तुलसीदास जयंती इस बार 7 अगस्त को है. ऐसे मे आप सभी जानते ही होंगे कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया बल्कि सभी मानव जाति को श्रीराम के आदर्शों से जोड़ दिया. ऐसे में आज पूरे विश्व में श्रीराम का चरित्र उन लोगों के लिए आय बन चुका है जो समाज में मर्यादित जीवन का शंखनाद करना चाहते हैं. वहीं संवद् 1554 को श्रावण शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अवतरित गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि आज गोस्वामी जी राम भक्ति के मुख्य आधार बन गए हैं. तुलसीदास का मत है कि इंसान का जैसा संग साथ होगा उसका आचरण व्यवहार तथा व्यक्तित्व भी वैसा ही होगा, क्योंकि संगत का असर देर सवेर अप्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष, चेतन व अवचेतन मन एवं जीवन पर अवश्य पड़ता है. इस कारण से हमें सोच-समझकर अपने मित्र बनाने चाहिए और सत्संग की महिमा अगोचर नहीं है अर्थात् यह सर्वविदित है कि सत्संग के प्रभाव से कौआ कोयल बन जाता है तथा बगुला हंस. वहीं सत्संग का प्रभाव व्यापक है, इसकी महिमा किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में तुलसीदास के कई कथन है जिन्हे आप अपने दिमाग में बैठा ले या अपने जीवन में उतार लें तो आपका कल्याण हो सकता है. आइए जानते हैं आज उन कथनों को.
‘बिनु सतसंग बिबेक न होई.
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई.’
तुलसीदास का कथन है कि सत्संग संतों का संग किए बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती और सत्संग तभी मिलता है जब ईश्वर की कृपा होती है. यह तो आनंद व कल्याण का मुख्य हेतु है. साधन तो मात्र पुष्प की भांति है. संसार रूपी वृक्ष में यदि फल हैं तो वह सत्संग है. अन्य सभी साधन पुष्प की भांति निरर्थक हैं. फल से ही उदर पूर्ति संभव है न कि पुष्प से.
उपजहिं एक संग जग माहीं.
जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं.
सुधा सुरा सम साधु असाधू.
जनक एक जग जलधि अगाधू.
संत और असंत दोनों ही इस संसार में एक साथ जन्म लेते हैं लेकिन कमल व जोंक की भांति दोनों के गुण भिन्न होते हैं. कमल व जोंक जल में ही उत्पन्न होते हैं लेकिन कमल का दर्शन परम सुखकारी होता है जबकि जोंक देह से चिपक जाए तो रक्त को सोखती है. उसी प्रकार संत इस संसार से उबारने वाले होते हैं और असंत कुमार्ग पर धकेलने वाले. संत जहां अमृत की धारा हैं तो असंत मदिरा की शाला हैं. जबकि दोनों ही संसार रूपी इस समुद्र में उत्पन्न होते हैं.