सावन का पवित्र महीना भोले के भक्तों के लिए अहम माना जाता है. ऐसे में इस महीने में भोले का पूजन बहुत धूम धाम से करते हैं. वहीं उनके 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा भी बड़े जोरों से की जाती है और आज हम उनमे से दो ज्योतिर्लिंग की कहानी इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं.
*ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग- पुराणों के अनुसार विन्ध्य पर्वत ने भगवान शिव की पार्थिव लिंग रूप में पूजन व तपस्या की थी अतएव भगवान शिव ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया एवं प्रणव लिंग के रूप में विराजित हुए. देवताओं की प्रार्थना के पश्चात शिवलिंग 2 भागो में विभक्त हो गया एवं एक भाग ओम्कारेश्वर एवं दूसरा भाग ममलेश्वर कहलाया, जिसमे ज्योतिलिंग ओंकारेश्वर में एवं पार्थिव लिंग अमरेश्वर/मम्लेश्वर में स्थित है अन्य कथानुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धाता ने नर्मदा नदी के किनारे कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया .यहां प्रकट हुए,तभी से भगवान ओंकारेश्वर में रूप में विराजमान हैं. इसमें 68 तीर्थ हैं. यहाँ 33 करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं. नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है.
*महाकालेश्वर- यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में है. ऐसा कहते हैं जो भी इंसान इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसे मोक्ष मिलता है. महाभारत में, महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है. आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर से बढ़कर कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है इस कारण से महाकालेश्वर को पृथ्वी का अधिपति कहते हैं. मान्यता अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी स्वयं भगवान यमराज हैं. तभी जो भी व्यक्ति इस मंदिर में आ कर भगवान शिव की सच्चे मन से प्राथर्ना करता है, उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली यातनाओं से मुक्ति मिलती हैं.