भगवान सूर्य का नाम विवस्वान और आदित्य है। भगवान अपने रथ पर आरूढ़ होकर अंगिरा ऋषि, विश्वावसु, प्रम्लोचार अप्सरा, एलापुत्र नाग, श्रोता यक्ष और शर्य राक्षस के साथ गमन करते हैं। भगवान आदित्य की हजारों हजार रश्मियां हैं जिनसे यह सृष्टि आलोकित होती है। उन्होंने कहा कि वे उन्हें साष्टांग नमन करते हैं। कल्याण और वृद्धि प्रदान करते हैं। इंद्र आदित्य 7 सहस्त्र रश्मियों से तपते हैं भगवान आदित्य का वर्ण सफेद है। पौराििणक मान्यता है कि पूर्वकाल में त्रिभुवन विख्यात काशी में पंचगड्ंगा के समीप भगवान सूर्य ने तपस्या की थी।
यहां उन्होंने गभस्तीश्वर नामक शिवलिंग और मंड्ंगलागौरी की स्थापना कर उनकी आराधना की। भगवान सूर्य तीव्र तेज से प्रज्वलित हैं। भगवान का तेज इतना था कि धरती और सृष्टि पर प्रभाव पड़ने लगा। ज्वालाओं से सब जलने लगा। तब भगवान से सभी ने प्रार्थना की। ऐसे में भगवान शिव समाधि में लीन सूर्य देव के सामने प्रकट हुए और उनका तप पूर्ण किया। भगवान ने उन्हें सुख – समृद्धि का वरदान दिया। पुत्र – पौत्रादि की वृद्धि देने का आशीर्वाद दिया।
ऐसे में भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया कि जिस शिवलिंग का पूजन सूर्य देव ने किया है उसका नाम गभस्तीश्वर शिवलिंग होगा। भगवान ने कहा कि चैत्र शुक्ल तृतीया को उपवास कर मड्ंगलागौरी का पूजन किया। उन्होंने कहा कि तपस्या करते समय किरण पुंज ही दिखें हैं। तपस्या से आपमें इतना तेज और गर्मी आ गई। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि आपका पूजन करने वाले मानव निरोगी होंगे। दूसरी ओर काशी में मंगलागौरी के साथ तुम्हारे दर्शन से दरिद्रता का नाश होगा।