आप सभी जानते ही होंगे कि हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बेहद खास महत्व है और इसे भगवान शिव का निवास स्थल माना गया है. कहा जाता है चीन के कब्जे वाले तिब्बत क्षेत्र में आने वाले कैलाश पर्वत और मानसरोवर की यात्रा हर साल हजारों श्रद्धालु करते हैं और इस यात्रा को बेहद मुश्किल माना जाता है. कहते हैं यहां तक जाने का रास्ता भी बेहद दुर्गम है लेकिन इसके बाद भी यात्री पूरे जोश और भक्ति में सराबोर होकर कैलाश मानसरोवर तक की यात्रा करते हैं.
आप सभी को बता दें कि इस यात्रा पर जाने वाले भक्त मानसरोवर में तो डुबकी लगाते हैं पर उन्हें कैलाश पर्वत को दूर से ही प्रणाम कर लौटना पड़ता है क्योंकि वहां तक जाना किसी के लिए संभव नहीं है. कहा जाता है वहां तक पहुँचने के लिए कई लोगों ने कोशिश जरूर की, लेकिन या कुछ अपनी जान गंवा बैठे तो कुछ को हार मानकर वापस लौटना पड़ा. आइए जानते हैं आखिर क्यों नहीं चढ़ पाया कोई कैलाश पर. जी दरअसल कैलाश की ऊंचाई करीब 6638 मीटर है और इस लिहाज से यह एवरेस्ट से लगभग 2200 मीटर कम है लेकिन इसके बावजूद कोई भी कैलाश पर नहीं चढ़ सका है. कहा जाता है रूस के एक डॉक्टर अर्नेस्ट मल्डासेव ने अपनी जांच के बाद यह थ्योरी दी कि कैलाश पर्वत दरअसल इंसानों द्वारा बनाया गया एक विशाल और प्राचीन पिरामिड है और चारों ओर से छोटे-छोटे पिरामिड से घिरा हुआ है लेकिन इस थ्योरी को लेकर कोई पुख्ता बात सामने नहीं आ सकी.
वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि कैलाश पर चढ़ने की कोशिश करने वाले कई पर्वतारोहियों ने यह अनुभव किया है कि चढ़ाई के दौरान उनके बाल और नाखून तेजी से बढ़ने शुरू हो गये और एक बार साइबेरिया क्षेत्र के कुछ लोगों ने इस पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन उन्होंने अनुभव किया कि वे बूढ़े होने लगे हैं और इसी कारण वह अपनी चढ़ाई बीच में छोड़कर वापस आ गए लेकिन उसके 1 साल बाद उनकी मृत्यु हो गई. वहीं ऐसा भी कहा जाता है कैलाश पर ना चढ़ाई का एक कारण कभी खराब मौसम, कभी स्वास्थ्य तो कभी रास्ता भटक जाना रहा है. इसी के साथ ऐसा कहते हैं कि कैलाश पर्वत के चारों ओर कई ऐसी गुफाए हैं, जिनके बारे में दुनिया को पता नहीं है और यहां दिव्य साधु-संत जाकर रहते हैं और तपस्या करते हैं. यह गुफाएं केवल कुछ लोग ही देख सकटे हैं.