‘गणानां जीवजातानां य ईशः स गणेशः’ अर्थात् जो समस्त गणों तथा जीव-जाति के स्वामी हैं वही गणेश हैं। गणेश विगत 6 मनवंतर में अनेकों बार जगत कल्याण हेतु जन्म ले चुके हैं, किन्तु जिन भगवान गणेश का आजकल हम भजन-पूजन करते हैं, जो सभी के अंतर्मन में विराजते हैं, इन भगवान गणेश का जन्म सातवें वैवस्वत मनवंतर के मध्य श्वेतवाराह कल्प में भादौं माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी तिथि सोमवार को स्वाति नक्षत्र की सिंह लग्न में नारायणास्त्र ‘चक्रसुदर्शन’ मुहूर्त (अभिजित) में हुआ था। उस समय सभी शुभ ग्रह ने मिलकर इनकी कुंडली में पंचग्रही योग बनाए थे। बाकी पाप ग्रह अपने कारक भाव में बैठे थे।
पंचभूत में जल तत्व के अधिपति हैं गणेश
पंचभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में पृथ्वी शिव, जल गणेश, तेज-अग्नि शक्ति, वायु सूर्य और आकाश विष्णु हैं। इन पांच तत्वों के बगैर जीव-जगत की कल्पना नहीं की जा सकती। जल तत्व के अधिपति गणेश हर जीव में रक्त रूप में विराजते हुए चारों देवों सहित पंचायतन में पूज्य हैं, जैसे श्रृष्टि का कोई भी शुभ-अशुभ कार्य जल के बिना पूर्ण नहीं हो सकता। वैसे ही गणेश पूजन के बिना कोई भी जप-तप, अनुष्ठान आदि कर्म पूर्ण नहीं हो सकता।
गणेश का शाब्दिक अर्थ
ज्योतिषशास्त्र में अश्विनी आदि सभी नक्षत्रों के अनुसार देवगण, मनुष्यगण और राक्षसगण इन तीनो गणों के ईश गणेश ही हैं। ‘ग’ ज्ञानार्थवाचक और ‘ण’ निर्वाणवाचक है ‘ईश’ अधिपति हैं। कहने का तात्पर्य यह कि ज्ञान-निर्वाणवाचक गण के ईश गणेश ही परब्रह्म हैं। योग-शास्त्रीय साधना में शरीर में मेरुदंड के मध्य जो सुषुम्ना नाड़ी हैं, वह ब्रह्मरंध्र में प्रवेश करके मष्तिष्क के नाड़ी समूह से मिल जाती है, इसका आरम्भ मूलाधार चक्र ही है। इसी ‘मूलाधार चक्र’ को गणेश स्थान कहते हैं।
गणेश का आध्यात्मिक अर्थ
गणेश्वरो विधिर्विष्णु: शिवो जीवो गुरुस्तथा।
षडेते हंसतामेत्य मूलाधारादिषु स्थिताः।।
आध्यात्मिक भाव से ये चराचर जगत की आत्मा हैं, सभी के स्वामी हैं, सभी के हृदय की बात समझ लेने वाले सर्वज्ञ हैं। इन्द्रियों के स्वामी होने से भी इन्हें गणेश कहा गया है। इनका सर हाथी का और वाहन मूषक है। मूषक का कर्म है चोरी करना, प्राणियों के भीतर छुपे हुए काम, क्रोध मद, लोभादि पापकर्म की जो वृतियां हैं, उनका प्रतीक हैं गणेश जी जो कि उस पर सवार होकर इन वृतियों को दबाए रहते हैं। इनके भजन-पूजन से ये विनाशक पापकर्म वृत्तियां दबी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप जीवात्मा की चिंतन-स्मरण की शक्ति तीक्ष्ण बनी रहती है। अतः मूषक वाहन का अर्थ अपने भीतर की दुष्ट दुर्वृत्तियों का दमन करना ही है। ‘गजमुख’ में गज का अर्थ आठ होता है, जिसका तात्पर्य है, जो आठों दिशाओं की आठों प्रहर रक्षा करता हो।
गणपति की साधना के लाभ
गणपति से जुड़े आध्यात्मिक रहस्य
ये पाश, अंकुश और वरमुद्रा धारण करते हैं। पाश मोह का प्रतीक है, जो तमोगुण प्रधान है। अंकुश वृत्तियों का प्रतीक है, जो रजोगुण प्रधान है। वरमुद्रा सत्वगुण का प्रतीक है। इनकी उपासना करके प्राणी तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण से ऊपर उठकर इनकी कृपा का पात्र बनता
है।