आप सभी ने अब तक कई ऐसी कथाएं शनि होंगी जो बहुत अजीब और भावपूर्ण रहीं हैं. ऐसे में आज भी हम आपको एक ऐसी कथा सुनाने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद आप हैरान रह जाएंगे और आपको यकीन ही नहीं होगा. जी हाँ, कहते हैं भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक है नंदी. वहीं एक बार नंदी ने रावण को श्राप दे दिया था जिसका वर्णन पौराणिक कथाओं में किया गया है जो आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं. आइए जानते हैं.
पौराणिक कथा – शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र रूप में पाया था. शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया. अल्पायु नंदी ने शिव की घोर तपस्या की. शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने कहा वरदान मांग. तब नंदी ने कहा, मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं. नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया.जिस तरह गायों में कामधेनु श्रेष्ठ है उसी तरह बैलों में नंदी श्रेष्ठ है. आमतौर पर खामोश रहने वाले बैल का चरित्र उत्तम और समर्पण भाव वाला बताया गया है. इसके अलावा वह बल और शक्ति का भी प्रतीक है.
बैल को मोह-माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला प्राणी भी माना जाता है. यह सीधा-साधा प्राणी जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है. यही सभी कारण रहे हैं जिसके कारण भगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया. शिवजी का चरित्र भी बैल समान ही माना गया है. एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया. वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें वानर के समान मुख वाला कहा. तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि वानरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा.