जिन-जिन महाशक्तियों को धरती की धारणा शक्ति बताया गया है, उनमें गौ प्रमुख हैं। शास्त्रों में कहा गया है “लक्ष्मी: सर्वभूतानां सर्वदेवष्ववस्थिता। धेनरूपेण सा देवी मम पापं व्यपोहतु।।नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य: सौरभेयीभ्य एव च। नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नम:।।” अर्थात् जो सब प्रकार की भूति, लक्ष्मी है, जो सभी देवताओं में विद्यमान है, वह गौ रूपिणी देवी हमारे पापों को दूर करे। जो सभी प्रकार से पवित्र है, उन लक्ष्मी रूपिणी सुरभि कामधेनु की संतान तथा ब्रह्मपुत्री गौओं को मेरा बार बार नमस्कार है।
वेदों में पृथ्वी को भी गौ रूपा माना गया है। गायों के गोबर से शुद्ध खाद एवं उससे उत्पन्न वृषभों की सहायता से श्रेष्ठ एवं सात्विक कृषि तथा यज्ञीय हविष्य के योग्य श्रेष्ठ सोलह प्रकार के अन्नों की उत्पत्ति होती है। इससे प्राणिमात्र एवं देवगण तृप्त होते हैं। गौ मानव संस्कृति की रीढ़ है। गाय पृथ्वी के समस्त प्राणियों की जननी है। गौ के श्रृंगों के मध्य में ब्रह्मा, ललाट में भगवान शंकर, दोनों कणों में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य तथा कक्ष में साध्य देवता, ग्रीवा में पार्वती, पीठ पर नक्षत्रगण, ककुद में आकाश, गोबर में अष्टैश्वर्य संपन्न तथा स्तनों में जल से परिपूर्ण चारों समुद्र निवास करते हैं।
ब्राह्मण को नमस्कार करने और गुरु के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, वही फल गौ माता के स्पर्श से प्राप्त हो जाता है। इस संसार में सारे हव्य, कव्य, घृत, दधि, दुग्ध, मिष्ठान्न और श्रेष्ठ औषधियां गव्य पदार्थों पर ही आश्रित हैं। वाल्मीकिय रामायण के अनुसार जहां गौ होती है, वहां सभी प्रकार की समृद्धि, धन धान्य एवं सृष्टाति सृष्ट भोज्य पदार्थों का प्राचुर्य होता है। गाय प्रत्यक्ष देवता है। उसमें सर्वांशत: सत्वगुण विद्यमान रहते हैं। शास्त्रों में गाय के गोबर जैसे तत्व में महालक्ष्मी का निवास बतलाया गया है। गोमय से लिप्त हो जाने पर पृथ्वी पवित्र यज्ञभूमि बन जाती है और वहां से सारे भूत प्रेत एवं अन्य तामसिक प्राणी पदार्थ अपसृत हो जाते हैं। गोमूत्र गंगाजी का निवास होता है। जो पाप किसी प्रायश्चित से दूर नहीं होते, वे गोमूत्र सहित अन्य चार गव्य पदार्थों से युक्त होकर पंचगव्य रूप में अस्थि, मन, प्राण और आत्मा में स्थित पाप समूहों के प्रक्षालन की क्षमता रखते हैं।
गौ को साक्षात देव स्वरूप मानकर उसकी रक्षा न केवल प्रत्येक मानव मात्र का कर्तव्य है वरन् धर्म भी है। यह एक ऐसी प्रत्यक्ष देवता है जो अनन्तकाल में सम्प्रदाय और मत मतान्तरों की श्रृंखला से ऊपर उठकर मानवमात्र को अपना कृपा प्रसाद प्रदान करती आ रही है। समृद्धि की कामना वाले विश्व के हर मानव के लिए गौ आराध्य के सदृश प्रणय एवं पूजनीय है। तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान और दान से, ब्राह्मण भोजन से, सम्पूर्ण व्रत उपवास, तप, दान, आराधन, पृथ्वी परिक्रमा, वेद स्वाध्याय तथा समस्त यज्ञों की दीक्षा ग्रहण करने पर जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य गौ को हरी घास देकर प्राप्त करते है।