शिव और शक्ति मिलकर इस संसार की रचना करते हैं और उन्हीं की शक्ति से यह जगत चलता है। ऐसे में शक्ति की आराधना का महत्व भी बढ़ जाता है। मां अपने कई स्वरूपों में प्रतिष्ठापित हैं। माता सती भारत में मौजूद 51 शक्तिपीठों में जागृत रूप से निवास करती हैं। पौराणिक आख्यानों में वर्णन मिलता है कि माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ को स्वयं की आहूति देकर ध्वंस किया।
माता सती से बिछड़ने के कारण भगवान शिव दुख से भर गए और माता का शव लेकर भटकने लगे। ऐसे में ऋषि, देवता सभी परेशान हो गए और सृष्टि के संचालन के लिए उन्होंने भगवान श्री हरि विष्णु से प्रार्थना की। तब उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव शरीर को चक्र से विभिन्न भागों में विभक्त किया। जहां भी माता की पार्थिव देह के भाग गिरे वह शक्तिपीठ कहलाया ऐसे 51 शक्तिपीठों का सृजन हुआ। इन शक्तिपीठ में एक शक्तिपीठ है दतिया का मां पीतांबरा शक्तिपीठ। दतिया जी हां। मध्यप्रदेश में माता का यह जागृत शक्तिपीठ है। यहां माता की तंत्रोक्त आराधना की जाती है।
माता की आराधना तंत्र माध्यम से की जाती है। माता यहां तंत्र की अधिष्ठात्री कहलाती हैं। माता को प्रसन्न करने के लिए यहां श्रद्धालु सात्विक पूजन भी करते हैं। गृहस्थ यहां चुनरी, सौलह श्रृंगार की सामग्री भी अर्पित करते हैं। नवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ जाती है। शुक्रवार को देवी के मंदिर में श्रद्धालु विशेष कामनाऐं लेकर आते हैं।
यहां श्रद्धालुओं को हवन करने की सुविधा भी है। बड़े पैमाने पर श्रद्धालु यहां हवन करवाते हैं। यही नहीं माता के चमत्कार अंग्रेजों ने भी देखे और वे भी माता के जागृत स्वरूप से श्रद्धा से भर गए। माता का स्वरूप चतुर्भुजा है। मां के हाथ में गदा, वज्र, पाश, राक्षस की जिव्हा धारण है। माता के दर्शन एक छोटी खिड़की के माध्यम से होते हैं यहां पर बड़े बड़े नेता भी आकर माथा टेकते हैं। माता को पीली वस्तुऐं बहुत प्रिय हैं।