हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हिंदू धर्म में रीति रिवाजों का बहुत ही महत्व होता और रीति रिवाज तीज त्यौहार से जुड़े हुए हो सकते, शादी विवाह से जुड़े हो सकते हैं या अन्य किसी पर्व से जुड़े. ऐसे में हर क्षेत्र में रीति रिवाजों को विशेष महत्व मानते हैं और ऐसे में जब शादी-विवाह की बात आती है तो उसमें इन रीति-रिवाजों का कुछ खास महत्व हो जाता है. जी हाँ, ऐसे में धार्मिक मान्यता के अनुसार हर रीति-रिवाज के पीछे कुछ तथ्य छुपे होते हैं, जिस वजह से इनको मानना अति आवश्यक हो जाता है.
जी हाँ, वहीं अगर बात करें हिंदू धर्म में विवाह की, तो हिंदू धर्म में तमाम रस्मो को निभाने के बाद ही विवाह को पूर्ण माना जाता है और इन सभी रस्मो में से एक रस्म है कन्यादान की, जो हिंदू धर्म की शादियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जी हाँ, क्योंकि इस रस्म के बिना कोई भी शादी पूर्ण नहीं मानी जाती है. कहते हैं कन्यादान की रस्म वह रस्म है, जिसमें कन्या के हाँथ को विधिपूर्वक वर के हाथ में सौंपा जाता है और यह रस्म कन्या के माता- पिता द्वारा निभाई जाती है. इसी के साथ आप जानते ही होंगे कि किसी भी शादी का यह अभिन्न हिस्सा होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि, आखिर क्या है कन्यादान की रस्म क्यों करते हैं. नहीं तो आइए जानते हैं.
कन्यादान- कहते हैं हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार वर को विष्णु भगवान का स्वरूप माना जाता है और इस रस्म के पीछे का महत्व यह है कि, जब पिता अपनी कन्या का हाथ वर के हाथ में सौपता है, तो वह वर से इस बात का आश्वासन लेता है कि, ‘वह उसकी कन्या को हमेशा खुश रखेगा तथा उसके जीवन में कभी कोई आंच नहीं आने देगा’. वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार जब पिता विधिपूर्वक अपनी बेटी का कन्यादान करता है, तो इससे पूरे परिवार का कल्याण होता है कहते हैं धार्मिक मान्यता के अनुसार कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है, तथा जो व्यक्ति कन्यादान करता है उसका जीवन सफल हो जाता है और जो व्यक्ति बहुत ही सौभाग्यशाली होता है, उसे ही कन्यादान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है.