भगवान शिव के गले में पड़ी सर्प की माला, दुष्टों को भी गले लगाने की क्षमता और मुंडों की माला, जीवन की अंतिम अवस्था की वास्तविकता को दर्शाती है।
शिव शब्द का अर्थ है “शुभ”। शंकर का अर्थ है “कल्याण करने वाले”। निश्चित रूप से उन्हें प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ेगा। शिवो भूत्वा शिवं यजेत् यानी शिव बनकर ही उनकी पूजा करें। हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित शिव के स्वरूप की प्रलयंकारी रूद्र के रूप में स्तुति की गई है। ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवउतोतइषवे नम: बाहुभ्यामुतते नम:। शिव दुष्टों को रूलाने वाले रूद्र हैं तथा सृष्टि का संतुलन बनाने वाले संहारक शंकर हैं।
त्रिनेत्र विवेक का प्रतीक
शिव पुराण के अनुसार शंकर जी के ललाट पर स्थित चंद्र, शीतलता और संतुलन का प्रतीक है। विश्व कल्याण का प्रतीक और चंद्रमा सुंदरता का पर्याय है जो सुनिश्चित ही शिवम् से सुंदरम् को चरितार्थ करता है। सिर पर बहती गंगा शिव के मस्तिष्क में अविरल प्रवाहित पवित्रता का प्रतीक है।
भगवान् शिव का तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है, जिसके खुलते ही कामदेव नष्ट हुआ था अर्थात् विवेक से कामनाओं को विनष्ट करके ही शांति प्राप्त की जा सकती है। सर्पक माला दुष्टों को भी गले लगाने की क्षमता तथा कानों में बिच्छू, बर्र के कुंडल कटु एवं कठोर शब्द को सुनने की सहनशीलता ही सच्चे साधक की पहचान है। मृगछाल निरर्थक वस्तुओं का सदुपयोग करना और मुंडों की माला, जीवन की अंतिम अवस्था की वास्तविकता को दर्शाती है। भस्म लेपन, शरीर की अंतिम परिणति दर्शाती है। भगवान् शिव के अंतस का तवज्ञान शरीर की नश्वरता और आत्मा अमरता की ओर संकेत करता है। शिव को बिल्व पत्र चढ़ाने से लोभ, मोह, अहंकार का नाश होता है। भले मन से भगवान शिव पर जल चढ़ाकर महाकाल को प्रसन्न किया जा सकता है।
कुछ धार्मिक कहे जाने वाले लोगों ने शिव पूजा के साथ नशे की परिपाटी जोड़ रखी है जो गलत है।
अज अनवद्य अकाम अभोगी।।
अर्थात जैसा विराट पवित्र व्यक्तित्व है, उसने पता नहीं नशा कब किया होगा। भांग, धतूरा, चिलम, गांजा जैसे घातक नशे करना मानवता पर कलंक है। नशेबाजी एक धीमी आत्महत्या है। इस व्यक्तिगत और सामाजिक बुराई से बचकर नशा निवारण के संकल्पों को उभारना ही शंकर की सच्ची आराधना है।