17 अप्रैल के ही दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था. ऐसे में आज हम आपको उनसे जुडी एक ऐसी कथा बताने जा रहे हैं जो बहुत रोचक और प्रिय है.
शूलपाणि का क्रोध नष्ट कर किया उद्धार- घूमते हुए महावीर वेगवती नदी के किनारे स्थित एक उजाड़ गांव के निकट पहुंचे. गांव के बाहर एक टीले पर एक मंदिर बना हुआ था. उसके चारों ओर हड्डियों और कंकालों के ढेर लगे थे. महावीर ने सोचा, यह स्थान उनकी साधना के लिए ठीक रहेगा. तभी कुछ ग्रामीण वहां से गुजरे और उनसे बोले- यहां अधिक देर मत ठहरो मुनिराज. यहां जो भी आता है, उसे मंदिर में रहने वाला दैत्य शूलपाणि चट कर जाता है. ये हड्डियां ऐसे ही अभागे लोगों की हैं.
शूलपाणि समझ गया कि वह मनुष्य निश्चित ही कोई दिव्य प्राणी है. वह भय से थर्राने लगा. तभी महावीर के शरीर से एक दिव्य आभा निकलकर दैत्य के शरीर में समा गई और देखते ही देखते क्रोध पिघल गया, गर्व चूर-चूर हो गया. वह महावीर के चरणों में लोट गया और क्षमा मांगने लगा.
महावीर ने नेत्र खोले और उसे आशीर्वाद देते हुए करुणापूर्ण स्वर में बोले- ‘शूलपाणि! क्रोध से क्रोध की उत्पत्ति होती है और प्रेम से प्रेम की. यदि तुम किसी को भयभीत न करो तो हर भय से मुक्त रहोगे. इसलिए क्रोध की विष-बेल को नष्ट कर दो.’ शूलपाणि के नेत्र खुल गए. उसका जीवन बदल गया.