17 अप्रैल को महावीर जयंती का पर्व मनाया जाता है. यह त्यौहार जैनों का सबसे प्रमुख त्योहार है और महावीर स्वामी का जन्म दिवस चैत्र की शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है. ऐसे में भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, जिन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया. कहते हैं एक राज परिवार में जन्म लेने वाले वर्धमान ने राज-पाठ, परिवार, धन-संपदा छोड़कर युवावस्था में ही लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाया और उस मार्ग पर सभी को चलना सिखाया.
30 वर्ष की आयु में ज्ञान के लिए घर छोड़ा – आप सभी को बता दें कि महावीर जी ने 30 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त करने के लिए घर-परिवार छोड़ दिया और सत्य, अहिंसा और प्रेम की शक्ति को महसूस किया. वहीं वर्धमान में क्षमा करने का एक अद्भुत गुण था और कहा जाता है कि क्षमा वीरस्य भूषणम.
वहीं उसके बाद ही उन्हें महावीर कहा जाने लगा. आप जानते ही होंगे कि तीर्थंकर महावीर ने अपने सिद्धांतों को जनमानस के बीच रखा और उन्होंने ढोंग, पाखंड, अत्याचार, अनाचारत व हिंसा को नकारते हुए दृढ़तापूर्वक अहिंसक धर्म का प्रचार किया.
इसी के साथ महावीर ने समाज को अपरिग्रह, अनेकांत और रहस्यवाद का मौलिक दर्शन समाज को दिया और कर्मवाद की एकदम मौखिक और वैज्ञानिक अवधारणा महावीर ने समाज को दी. इसी के साथ आपको बता दें कि उस समय भोग-विलास एवं कृत्रिमता का जीवन ही प्रमुख था,
मदिरापान, पशुहिंसा आदि जीवन के सामान्य कार्य थे. उस समय बलिप्रथा ने धर्म के रूप को विकृत कर दिया था इस कारण उन्होंने सभी को समझाने का पूर्ण प्रयास किया.