आप सभी को बता दें कि इस बार गणगौर तीज का पर्व 8 अप्रैल को मनाया जाने वाला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस पर्व की कथा. आइए जानते हैं. कथा – एक बार भगवान शंकर तथा पार्वतीजी नारदजी के साथ भ्रमण को निकले. चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गांव में पहुंच गए. उनके आगमन का समाचार सुनकर गांव की श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं. भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफी विलंब हो गया.
किंतु साधारण कुल की स्त्रियां श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुंच गईं. पार्वतीजी ने उनके पूजा-भाव को स्वीकार करके सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया. वे अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं. तत्पश्चात उच्च कुल की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान लेकर गौरीजी और शंकरजी की पूजा करने पहुंचीं. उन्हें देखकर भगवान शंकर ने पार्वतीजी से कहा, ‘तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों को ही दे दिया, अब इन्हें क्या दोगी?’ पार्वतीजी ने उत्तर दिया, ‘प्राणनाथ, आप इनकी चिंता मत कीजिए. उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है, परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूंगी.
यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से मुझ जैसी सौभाग्यशाली हो जाएगी.’ जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उंगली चीरकर उन पर छिड़क दिया तथा जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया. तत्पश्चात भगवान शिव की आज्ञा से पार्वतीजी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू की शिव-मूर्ति बनाकर पूजन करने लगीं. पूजन के बाद बालू के पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया. प्रदक्षिणा करके नदी तट की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर दो कण बालू का भोग लगाया. इतना सब करते-करते पार्वती को काफी समय लग गया. काफी देर बाद जब वे लौटकर आईं तो महादेवजी ने उनसे देर से आने का कारण पूछा. उत्तर में पार्वतीजी ने झूठ ही कह दिया कि वहां मेरे भाई-भावज आदि मायके वाले मिल गए थे. उन्हीं से बातें करने में देर हो गई. परंतु महादेव तो महादेव ही थे. वे कुछ और ही लीला रचना चाहते थे. अत: उन्होंने पूछा- ‘पार्वती! तुमने नदी के तट पर पूजन करके किस चीज का भोग लगाया था और स्वयं कौन-सा प्रसाद खाया था?’स्वामी! पार्वतीजी ने पुन: झूठ बोल दिया- ‘मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया. उसे खाकर मैं सीधी यहां चली आ रही हूं.’
यह सुनकर शिवजी भी दूध-भात खाने के लालच में नदी तट की ओर चल दिए. पार्वतीजी दुविधा में पड़ गईं. तब उन्होंने मौन भाव से भगवान भोलेशंकर का ही ध्यान किया और प्रार्थना की- ‘हे भगवन्! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूं तो आप इस समय मेरी लाज रखिए.’ यह प्रार्थना करती हुईं पार्वतीजी भगवान शिव के पीछे-पीछे चलती रहीं. उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया. उस महल के भीतर पहुंचकर वे देखती हैं कि वहां शिवजी के साले तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं. उन्होंने गौरी तथा शंकर का भावभीना स्वागत किया. वे 2 दिनों तक वहां रहे. तीसरे दिन पार्वतीजी ने शिव से चलने के लिए कहा, पर शिवजी तैयार नहीं हुए. वे अभी और रुकना चाहते थे. तब पार्वतीजी रूठकर अकेली ही चल दीं. ऐसी हालत में भगवान शिवजी को पार्वती के साथ चलना ही पड़ा. नारदजी भी साथ-साथ चल दिए.
चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए. उस समय भगवान सूर्य अपने धाम (पश्चिम) को पधार रहे थे.अचानक भगवान शंकर पार्वतीजी से बोले- ‘मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूं.’ ‘ठीक है, मैं ले आती हूं’, पार्वतीजी ने कहा और वे जाने को तत्पर हो गईं, परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और इस कार्य के लिए ब्रह्मपुत्र नारदजी को भेज दिया, लेकिन वहां पहुंचने पर नारदजी को कोई महल नजर नहीं आया. वहां तो दूर-दूर तक जंगल ही जंगल था जिसमें हिंसक पशु विचर रहे थे. नारदजी वहां भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? मगर सहसा ही बिजली चमकी और नारदजी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दी. नारदजी ने माला उतार ली और शिवजी के पास पहुंचकर वहां का हाल बताया. शिवजी ने हंसकर कहा- ‘नारद! यह सब पार्वती की ही लीला है.’
इस पर पार्वती बोलीं- ‘मैं किस योग्य हूं?’तब नारदजी ने सिर झुकाकर कहा- ‘माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं. आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं. यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है. संसार की स्त्रियां आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं. तब आपके लिए यह कर्म कौन-सी बड़ी बात है?’ नारदजी ने आगे कहा कि ‘महामाये! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा सार्थक होता है. आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है. मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूं कि जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगल-कामना करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाले पति का साथ मिलेगा.’