बहुत कम लोग भगवान कृष्ण के उस पुत्र के बारे में जानते हैं जिसके कारण सम्पूर्ण यदुवंश का नाश हो गया था. जी हाँ, आज हम आपको उन्ही के बारे में बताने जा रहे हैं. जी हाँ, आज हम आपको उस पुत्र के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका नाम साम्ब था. आपको बता दें कि साम्ब कृष्ण और उनकी दूसरी पत्नी जांबवंती के ज्येष्ठ पुत्र थे जिसका विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से हुआ था. वहीं जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो गांधारी ने कृष्ण को इसका दोषी मानते हुए यदुकुल के नाश का श्राप दे दिया जिसे कृष्ण ने सहर्ष स्वीकार किया. आप सभी को बता दें कि उन्होंने ये भी कहा कि समय आने पर वे और बलराम स्वयं यदुकुल का नाश कर देंगे, हालाँकि किसी ने उस समय ये नहीं सोचा था कि कृष्ण के कुल का नाश उनके अपने पुत्र साम्ब के कारण होगा.
आप सभी को बता दें कि महाभारत को समाप्त हुए 36 वर्ष बीत चुके थे और एक बार महर्षि दुर्वासा एवं अन्य ऋषि द्वारका पधारे. वहीं ऋषियों का इतना बड़ा झुण्ड देख कर साम्ब और उनके मित्रों ने उनसे ठिठोली करने की सोची. इसके बाद उन्होंने साम्ब को एक स्त्री के रूप में सजाया और उसका मुख ढँककर महर्षि दुर्वासा के पास ले गए. इसके बाद उन्होंने महर्षि को प्रणाम कर उनसे कहा – “हे महर्षि! हमारी ये सखि गर्भवती है. आपलोग तो सर्वज्ञानी हैं अतः भविष्यवाणी कर के ये बताइये कि इसे प्रसव में पुत्र होगा अथवा पुत्री.” इस प्रकार के परिहास से सभी ऋषि बड़े दुखी हुए किन्तु इसे बालकों का बचपना समझ कर उन्होंने कुछ नहीं कहा. किन्तु महर्षि दुर्वासा अपने क्रोध पर नियंत्रण ना रख पाए. उन्होंने क्रोधित होते हुए कहा कि “रे मुर्ख! तू हमसे ठिठोली करता है? जा तेरी इस सखि के गर्भ से एक मूसल का प्रसव होगा और उसी मूसल से समस्त यदुकुल का नाश हो जाएगा.” महर्षि दुर्वासा का ये श्राप सुनकर सभी लोग भय के मारे वहाँ से भाग निकले.
अभी वे थोड़ी ही दूर गए थे कि साम्ब को प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी और उसने वही मार्ग में एक विशाल मूसल को उत्पन्न किया. इसके बाद सभी अत्यंत भयभीत होकर उस मूसल को लेकर श्रीकृष्ण के पास पहुँचे और उन्हें सारी घटनाएँ सच-सच बता दी. इसके बाद जब कृष्ण और बलराम ने ऐसा सुना तो अत्यंत दुखी हुए और कृष्ण समझ गए कि यदुकुल के नाश और उनके और बलराम के निर्वाण का समय आ पहुँचा है. इसके बाद जब महाराज उग्रसेन ने ये सुना तो उन्होंने आज्ञा दी कि इस मूसल को चूर्ण कर समुद्र किनारे फिकवा दिया जाये ताकि इससे किसी प्रकार का खतरा ना रहे. कृष्ण तो सब जानते ही थे किन्तु उन्होंने कुछ कहा नहीं.
उग्रसेन की आज्ञानुसार उस मूसल को चूर्ण कर समुद्र किनारे फिकवा दिया गया. उस चूर्ण से मनुष्यों की ऊँचाई जितनी घास उग आई और थोड़े दिनों में लोग इस बात को भूल गए. कुछ समय बाद प्रभासतीर्थ के उत्सव हेतु समस्त यादवगण समुद्र के किनारे इकट्ठे हुए. वहाँ वाद-विवाद करते हुए वे सभी मदिरा का पान करने लगे. कृष्ण और बलराम ने उन्हें बहुत समझाया किन्तु किसी ने उनकी एक ना सुनी. दोनों समझ गए कि दैवयोग आ चुका है इसी कारण वे दोनों उस भीड़ से अलग जाकर बैठ गए. मदिरा के मद में सात्यिकी ने कृतवर्मा का मजाक उड़ाते हुए कहा – “ये देखो. ये वो महानुभाव हैं जो महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे. और तो और, ये इतने बड़े महारथी हैं कि रात्रि के अँधेरे में छलपूर्वक इन्होने उपपांडवों के वध में अश्वथामा का साथ दिया. इसपर भी आज ये निर्लज्ज की भांति यहाँ हमारे समक्ष बैठे हैं.”
सात्यिकी के इस प्रकार कहने पर वहाँ उपस्थित यादव कृतवर्मा पर हँसने लगे. ऐसा देख कर कृतवर्मा स्वयं को अत्यंत अपमानित महसूस करने लगे. उन्होंने क्रोध में कहा – “रे क्लीव! तू मेरी वीरता की क्या बात करता है? तेरी वीरता भी तो जग जाहिर है. तूने भूरिश्रवा का छल से वध किया. अगर ऐसा ना होता तो तू कब का नर्क सिधार गया होता.” कृतवर्मा के ऐसा कहने पर अब यादव सात्यिकी पर हँसने लगे. तब सात्यिकी ने क्रोध में कहा – “हे नराधम! वो तू ही तो है जो सत्राजित का वध करना चाहता था.” ये सुनकर कि कृतवर्मा उनके पिता का वध करना चाहता था, सत्यभामा रोते-रोते कृष्ण के पास पहुँची. स्थिति बिगड़ते देख कृष्ण और बलराम तुरंत वहाँ पहुँचे.
इसी बीच क्रोधित हो कृतवर्मा ने फिर सात्यिकी को धिक्कारते हुए कहा – “रे अधम! महाभारत युद्ध के पाँचवे दिन तेरे समक्ष ही भूरिश्रवा ने तेरे 10 पुत्रों का वध कर डाला. जो अपने पुत्रों की रक्षा ना कर सका वो वीरता की बात किस प्रकार करता है?” इस प्रकार अपमानित होने पर सात्यिकी ने क्रोध में बिना कुछ सोचे अपनी खड्ग से कृतवर्मा का सर काट डाला. कृतवर्मा के इस प्रकार मारे जाने पर वहाँ हाहाकार मच गया. तुरंत ही वहाँ के सभी यादव वीर कृतवर्मा और सात्यिकी इन दो गुटों में बंट गए. कृतवर्मा की हत्या पर भोजराज और अंधक कुल के राजा ने सात्यिकी पर आक्रमण कर दिया. ऐसा देख कर कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उन्हें बचाने युद्ध में कूद पड़े. बात ही बात में कृष्ण और बलराम के समक्ष ही वहाँ यादवों के बीच भयानक युद्ध छिड़ गया.
किसी के पास अस्त्र-शस्त्र तो थे नहीं तो सभी ने वही उगी घास उखाड़-उखाड़ कर एक दूसरे को मरना शुरू कर दिया. दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण उन घासों से सहस्त्रों मूसल पैदा हो गए और उसी से सब एक दूसरे का नाश करने लगे. जब कृष्ण और बलराम ने ऐसा देखा तो मारे दुःख और क्रोध के स्वयं उसी घास से सबका वध करना आरम्भ कर दिया. देखते ही देखते कृष्ण और बलराम को छोड़कर समस्त यादव कुल का नाश हो गया. यहाँ तक कि कृष्ण और बलराम के सभी पुत्र भी काल को प्राप्त हो गए. इसके बाद दुखी बलराम ने स्वयं जल-समाधि ले ली और कृष्ण अकेले वन में जाकर एक वृक्ष के नीचे लेट गए जहाँ जरा नामक शिकारी ने अज्ञानता में उनके चरणों में बाण से प्रहार कर दिया. इसके बाद श्रीकृष्ण ने भी अपने प्राण त्याग दिए.