छत्तीसगढ़ के बस्तर में गोंचा महापर्व के दौरान भगवान जगन्नाथ को तुपकी के जरिए ‘गॉर्ड ऑफ ऑनर’ देने की अनोखी परंपरा है जो हर साल निभाई जाती है। यह परंपरा भारत ही नहीं, विश्व के लिए भी अनोखी है। जगन्नाथ की 22 मूर्तियों की एक साथ स्थापना, पूजन और उन सबकी एक साथ रथयात्रा निकाले जाने का उदाहरण भी पूरे देश में कहीं और नहीं मिलता। यहां भगवान जगन्नाथ के लिए हर वर्ष नए रथ का निर्माण भी किया जाता है। इस वर्ष भी ‘चंदन जात्रा’ के साथ ही भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की तैयारी शुरू हो चुकी है। रथयात्रा गोंचा महापर्व का ही हिस्सा है। यहां 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के हैं। सदियों पहले तत्कालीन राजा ने ओडिशा से आरण्यक ब्राह्मणों को बुलाकर भगवान जगन्नाथ की सेवा व पूजा के लिए यहां बसाया था।
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पुजारियों में से एक नरेंद्र पाणिग्राही ने बताया कि देवस्नान, चंदन जात्रा, पूजा विधान के साथ ही ऐतिहासिक गोंचा महापर्व शुरू हो गया है। इस वर्ष हिंदू पंचाग के अनुसार, जोड़ा आषाढ़ की तिथि पड़ने के कारण भगवान जगन्नाथ का अनसरकाल की अवधि 45 दिनों तक रहेगी। पाणिग्राही ने बताया कि देवस्नान-चंदन जात्रा व पूजा विधान के बाद जगन्नाथ मंदिर में स्थापित प्रभु जगन्नाथ, सुभ्रदा, बलभद्र के विग्रहों को जगन्नाथ मंदिर के बीच में स्थित मुक्ति मंडप में स्थापित किया गया। इसके बाद भगवान जगन्नाथ का अनसरकाल प्रारंभ हो गया। अनसरकाल 16 जुलाई तक जारी रहेगा। इस दौरान भगवान के दर्शन वर्जित रहेंगे। उन्होंने बताया कि इस महापर्व में हर साल नए रथों का निर्माण किया जाता है। तीन रथ एक साथ चलते हैं।
उन्होंने बताया कि बस्तर के विभिन्न 14 क्षेत्रों के भगवान जगन्नाथ सुभद्रा एवं बलभद्र की मूर्तियों को एक साथ जगदलपुर में सात खंड बनाकर रखा गया है। जहां तीन रथों में एक साथ स्थापित कर यात्रा निकाली जाती है। आरण्यक ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष दिनेश पाणिग्राही ने बताया कि बस्तर गोंचा महापर्व के 607 वर्षो की ऐतिहासिक परंपरानुसार समस्त पूजा विधान संपन्न किए जाते हैं। 16 जुलाई तक भगवान का अनसरकाल होगा। इस दौरान भगवान का दर्शन वर्जित रहेगा।
पाणिग्राही का कहना है कि मान्यता के अनुसार, देवस्नान के बाद अस्वस्थता के कारण स्वास्थ्य लाभ तक दर्शन वर्जित होता है। 17 जुलाई को नेत्रोत्सव पूजा विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ के दर्शन होंगे। 18 जुलाई को गोंचा रथयात्रा पूजा विधान के साथ ही प्रभु जगन्नाथ स्वामी जनकपुरी सिरहासार भवन में नौ दिनों तक रहेंगे। 21 जुलाई को अखंड रामायण पाठ होगा। उन्होंने बताया कि 22 जुलाई को हेरा पंचमी के दिन माता लक्ष्मी की डोली निकाली जाएगी। 23 जुलाई को छप्पन भोग का अर्पण होगा। 24 जुलाई को नि: शुल्क सामूहिक उपनयन/विवाह संपन्न होगा।
26 जुलाई को बाहुडा गोंचा रथयात्रा पूजा विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ स्वामी वापस श्री मंदिर पहुचेंगे। 27 जुलाई को देवशयनी एकादशी दिन बस्तर का गोंचा महापर्व संपन्न होगा। बांस से बनती है तुपकी : पाणिग्राही ने बताया कि तुपकी का निर्माण बांस से किया जाता है। इसके अंदर मालकागनी के बीज को भरकर लोग भगवान जगन्नाथ के सम्मानस्वरूप तुपकी से गोले छोड़ते हैं, जिससे तोप की तरह आवाज निकलती है। गोंचा महापर्व में सभी के हाथों में रथयात्रा के समय लोगों के हाथों में तुपकी रहती है।