सनातन संस्कृति में व्रत, त्योहारों और उत्सवों को एक माला की तरह पिरोकर मानव जीवन के लिए प्रस्तुत किया गया है। संस्कारों के इन्हीं सूत्रों से मानव जीवन समृद्ध होता है। इसके तहत त्योहारों का प्रकृति से सामंजस्य स्थापित किया गया है। जिसमें नदी, पहाड़ों, सरोवरों और पेड़-पौधों की उपासना और उनकी पूजा का प्रावधान किया गया है।
प्रकृति की आराधना का एक ऐसा ही पर्व है आंवला नवमी। आंवला नवमी के अवसर पर आंवले के वृक्ष को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। आंवले के पत्ते, फल और वृक्ष में श्रीहरी का वास माना जाता है इसलिए सुख, समृद्धि और सौभाग्य के लिए आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।
ब्रहमाजी के आंसूओं से हुई थी आंवला वृक्ष की उत्पत्ति
मान्यता के अनुसार आंवला के वृक्ष की उत्पत्ति ब्रह्माजी के आंसूओं से हुई थी। एक समय ब्रह्माजी क्षीरसागर में कमल के फूल पर विराजमान होकर परब्रह्म की तपस्या कर रहे थे। ब्रह्मदेव कठोरतम तप में लीन थे। प्रभुभक्ति में लीन ब्रह्माजी की आंखों से ईश अनुराग होने पर आंसूओं की बूंदें टपकने लगी। ब्रह्माजी के आंसूओं के धरती की गोद में टपकते ही आंसूओं ने बीज रूप धारण कर लिया और फिर इन्ही बीजों से आंवले का पेड़ उत्पन्न हुआ। इस तरह से आंवले के पेड़ और फल का जन्म हुआ।
आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष में करते है शिव और विष्णु निवास
धर्मशास्त्रों के मुताबिक कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस दिन को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी, आरोग्य नवमी और कूष्मांड नवमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन आंवला वृक्ष में भगवान विष्णु और शिव निवास करते हैं इसलिए इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान से कई गुना फल मिलता है।
आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष के पास जाकर उसको प्रणाम करे और शुद्ध जल उसकी जड़ में समर्पित करे। उसके बाद वृक्ष की जड़ को कच्चे दूध से सींचे। वृक्ष की हल्दी, कुमकुम, अक्षत, गुलाल, अबीर से पूजा करें। वृक्ष के तने पर मौली या सुत को आठ परिक्रमा करते हुए लपेटें। वृक्ष की 108 परिक्रमा का भी विधान बताया गया है। इसके बाद वृक्ष की छाया में पहले कियी योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाए और फिर परिवार सहित भोजन गृहण करें।
पुराणों के अनुसार भोजन करते समय यदि थाली में आंवले का पत्ता गिर जाए तो यह आने वाले बेहतर भविष्य और उत्तम स्वास्थ्य का संकेत है। आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने की परंपरा का प्रारंभ धन की देवी लक्ष्मी ने किया था। चरक संहिता के अनुसार आज के दिन महर्षि च्यवन ने आंवले का सेवन किया था जिससे उनको नवयौवन प्राप्त हुआ था।
आंवला वृक्ष में होता है देवताओं का वास
विष्णु पुराण के अनुसार श्रीहरी के मुख से एक बिंदु धरती पर गिरा था जिससे आंवले के फल की उत्पत्ति हुई थी। इसले यह फल विष्णुजी को अत्यधिक प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार जिस प्रकार देवों में विष्णुजी का, नदियों में गंगा का स्थान है वैसे ही वृक्षों में आंवला वृक्ष का स्थान है। मानयता है कि आंवला वृक्ष को भगवान विष्णु ने धरती पर स्थापित किया था। आंवला वृक्ष के मूल भाग में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, तने में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद और फल में प्रजापति का वास माना जाता है।
आंवला रस के स्नान से होता है पापों का नाश
शास्त्रों के मुताबिक इस फल के स्मरणमात्र से गौदान के बराबर फल प्राप्त होता है। इस फल के खाने से तीन गुना शुभ फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी को आंवले से स्नान करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। जिस घर में आंवले का वृक्ष या फल होता है वहां पर विष्णु और लक्ष्मी निवास करते हैं। आंवले के रस से स्नान करने से दुष्ट और पाप ग्रहों का प्रभाव कम या खत्म हो जाता है।
मृत्यु के समय मुख, नाक, कान या सिर के बालों में आंवला रखने से मृतआत्मा को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। सर के बाल नित्य आंवले मिश्रित जल से धोने पर कलयुग के दोषों का नाश होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आंवले के वृक्ष की प्रदक्षिणा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
रविवार, सप्तमी, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, संक्रांति, शुक्रवार, षष्टी, प्रतिपदा, नवमी तिथि और अमावस्या को आंवले का त्याग करना चाहिए।