छठ पूजा सभी लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है ओर यह इस बार 10 नवम्बर से शुरू हो रही है. छठ पूजा वैसे तो 13 नवम्बर को मनाई जाने वाली है. ऐसे में आइए जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि.
पूजा विधि –
कहा जाता है व्रत के पहले दिन यानी की कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय होता है जिसमे व्रती आत्म शुद्धि हेतु केवल अरवा (शुद्ध आहार) खाते है और कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन लोहंडा और खरना होता है यानी स्नान करके पूजा पाठ करके संध्या काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और मिष्टान से छठी माता की पूजा की जाती है फिर व्रत करने वाले कुमारी कन्याओं को एवं ब्रह्मणों को भोजन करवाकर इसी खीर को प्रसाद के तौर पर खाया जता हैं. वहीं कार्तिक शुक्ल षष्टी के दिन घर में पवित्रता एवं शुद्धता के साथ उत्तम पकवान बनाये जाते हैं और उन्हें शाम को बड़े बडे बांस के डालों में भरकर जलाशय के निकट यानी नदी, तालाब, सरोवर पर लेकर जाते हैं और उन जलाशयों में ईख का घर बनाकर उनपर दीया जालाया जाता है.
उसके बाद व्रत करने वाले जल में स्नान कर इन डालों को उठाकर डूबते सूर्य एवं षष्टी माता को आर्घ्य देते हैं और सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने अपने घर वापस आ जाते हैं. उसके बाद रात भर जागरण करते है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुन: संध्या काल की तरह डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई भर कर नदी तट पर लोग जमा होते हैं. वहीं व्रत करने वाले (व्रती) सुबह के समय उगते सूर्य को आर्घ्य दे देते हैं और अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कहते हैं और सुनते हैं. वहीं कथा के बाद प्रसाद वितरण करते हैं और सभी अपने-अपने घर लौट आते हैं. कहा जाता है व्रती इस दिन पारण करते हैं. कहा जाता है जब छठ पूजा में मांगी हुई कोई मुराद पूरी हो जाती है तब मुराद पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं. वहीं आप सभी यह बात जानते हैं कि सूर्य को दंडवत प्रणाम करने की विधि बहुत ही कठिन होती है जो सभी के बस में नहीं होती है.
छठ पूजा करने वाले व्रती को नियम –
छठ पूजा में स्वच्छ व नए कपडे पहने जाते है जिसमे सिलाई न हो और महिलायें साडी और पुरुष धोती पहन सकते है.
छठ पूजा के दिनों में व्रत करने वाले लोग धरती पर सोते है और इसके लिए कम्बल और चटाई का प्रयोग कर सकते है.
छठ पूजा के दिनों में घर में प्याज, लहसुन और मांस का प्रयोग वर्जित माना जाता है.