आप सभी को बता दें कि इन दिनों पर्वों के आगमन पर सभी तैयारियों में लगे हुए हैं और दिवाली के लिए सभी घरों की साफ-सफाई में लगे हुए हैं. ऐसे में दिवाली के पहले धनतेरस और धनतेरस के बाद मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी के पर्व का अपना ही एक ख़ास महत्व हैं. ऐसे में नरक चतुर्दशी व नरक चौदस भी कहते हैं. आप सभी को बता दें कि शास्त्रो के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दुर्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था बस इसी कारण इस दिन दीयों की श्रृंखला जलाने का रिवाज हैं.
कहा जाता हैं इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह भी है कि रति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे. उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हो गए थे और यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो, आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नरक जाना होगा. उसके बाद उन्होंने कहा आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है और फिर यह सुनकर यमदूत ने कहा कि राजन एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है. इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा और तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी.
ऐसे में राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा और तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें. ऐसे में राजा ने वैसा ही किया. इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ हैं. उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है. ऐसे में यह मान्यता है कि इस दिन यमराज के नाम से दीपदान किया जाता है तथा करवा चौथ के करवे में रखे जल से स्नान करने से पापों का क्षय होता है.