तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी प्रथम पूजनीय हैं। गणपति के सम्पूर्ण शरीर तथा प्रत्येक अंग अवयव से हमें अनेंक शिक्षायें मिलती हैं। उनके प्रत्येक अंग में एक गहरा भाव छुपा होता है। उन्हें बुद्धि व ज्ञान का देवता कहा गया है तथा ॐ (प्रणव) भी कहा गया है। श्री गणेशजी का वाहन चूहा और उनके मुख पर हाथी की सूंड़ का होना दर्शाता है कि उनके अन्दर अगाध पशु प्रेम की भावनाएं निहित थीं। गणपति बड़े व छोटे के भेदभाव को समाप्त करना चाहते थे। उनके अनुसार कोई भी प्राणी या पशु की उपयोगिता का आकलन उसके आकार को देखकर नहीं किया जा सकता।
शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी की पूजा में दूर्वा का अति महत्व है। मान्यता है कि गणपति को दूर्वा चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। दूर्वा को पूजन परंपरा से जोड़कर उन्होंने दुर्लभ वनस्पतियों को बचाने का संदेश दिया ताकि हम धरती की रक्षा कर अपने लिये एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण कर सके।
श्री गणेश जी ने पृथ्वी की परिक्रमा का विषय आने पर अपनी माता की परिक्रमा कर आने वाली पीढ़ी को यह शिक्षा दी कि जीवन में उसके माता-पिता से बड़ा व बढ़कर कोई नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति को उनका सम्मान करना चाहिये।
आज भी श्री गणेश चतुर्थी का पर्व हमें अनेक शिक्षाएं दे जाता है। जैसे इस महोत्सव को समाज के सभी वर्ग व जाति के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। इससे समाज से भेदभाव व ऊँच-नीच का भाव समाप्त होता है, और सामूहिकता का वातावरण निर्मित होता है। राष्ट्रीय भावना का विकास होता है।
गणपति की साधना-अराधना के लिए 108 नाम हैं, जिनका जाप करने पर भीतरी आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। ऐसे ही श्री गणेश जी के 21 नाम वालें मंत्रों और 21 पेड़ों के पत्तों को अर्पित करने पर उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। पूजन की इस परंपरा के पीछे जीवनदायक प्राण वायु प्रदान करने वाले वृक्षों को न काटने का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। कहने का तात्पर्य गणपति की साधना-अराधना से जुड़े इन वृक्षों संरक्षण किया जाय।
श्री गणेश नाम वृक्षों के नाम
ॐ सुमुखाय नमः शमी पत्र
ॐ गणाधीशाय नमः भृंगराज पत्र
ॐ उमापुत्राय नमः बेल पत्र
ॐ गजामुखाय नमः दूर्वापत्र
ॐ लम्बोदराय नमः बेर का पत्र
ॐ हर पुत्राय नमः धतूरे का पत्र
ॐ शूर्पकर्णाय नमः तुलसी के पत्र
ॐ वक्रतुण्डाय नमः सेम का पत्र
ॐ गुहाग्रजाय नमः अपामार्ग पत्र
ॐ एकदंताय नमः भटकटैया पत्र
ॐ हेरम्बाय नमः सिंदूर पत्र
ॐ चतुर्होंत्रे नमः तेज पत्र
ॐ सर्वेश्वराय नमः अगस्त पत्र
ॐ विकटाय नमः कनेर पत्र
ॐ हेमतुण्डाय नमः केला पत्र
ॐ विनायकायनमः आक पत्र
ॐ कपिलाय नमः अर्जन पत्र
ॐ वटवे नमः देवरारू पत्र
ॐ भालचंद्रय नमः महुए के पत्र
ॐ सुराग्रजाय नमः गांधारी पत्र
ॐ सिद्धि विनायक नमः केतकी पत्र
इन सभी वृक्षों के पत्र अर्पित करने का विधान इसलिए था ताकि इन विलुप्तप्राय वृक्षों का रोपण व संरक्षण किया जा सके। ये सभी औषधि देने वाले वृक्ष है, जो मानव जाति के लिये अति लाभदायक है। आईए इसी के साथ वृक्षारोपण का संकल्प ले ताकि हम ग्लोबल वार्मिग को कम करने में सहयोग प्रदान कर सके, जिससे आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ भारत, निर्मल व अविरल जल धारा वाली नदियाँ व प्रदूषण रहित स्वच्छ वायु का उपहार दे पाएं।