चित्रकूट: प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में दीपदान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने से पूर्व भगवान श्रीराम ने माता सीता व भइया लखन के साथ मंदाकिनी में दीपदान कर साधु-संतों का आशीर्वाद लिया था।
कामदगिरि पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामस्वरुपाचार्य महराज कहते है कि राम चरित मानस में लिखा है कि ‘सकल रिसिन्ह जन पाई आशीषा, चित्रकूट आए जगदीशा’। रावण का वध करने के बाद भगवान जब अयोध्या लौट रहे थे तो उसके पहले उनका पुष्पक विमान चित्रकूट में उतरा था उन्होंने यहां पर पतित पावनी मंदाकिनी में दीपदान करके साधु संतों से आशीर्वाद लिया था। आज भी लोग मानते हैं कि भगवान श्रीराम दीपदान करने चित्रकूट आते हैं। देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु मंदाकिनी में डुबकी लगाकर हर साल दीपदान करते हैं।
दीपदान उत्सव के मुख्य आकर्षण
मंदाकिनी व कामदगिरि में दीपदान : धर्मनगरी आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु मा मंदाकिनी में डुबकी लगाने के बाद दीपदान करता है। इसके बाद कामदगिरि में दीपदान व परिक्रमा लगाता है।
दिवारी नृत्य : दिवारी नृत्य बुंदेलखंड का प्रमुख लोक नृत्य है। दीपदान के बाद बुंदेलखंड के तमाम गावों से आने वाली टीमों के बीच दीन दयाल शोध संस्थान की ओर से दिवारी प्रतियोगिता कराई जाती है।
गदहा मेला : दीपदान मेला का एक प्रमुख आयोजन गधा मेला भी है। इस मेले में कई प्रदेशों के गधा बिकने के लिए हर साल यहां आते हैं।
ग्राम श्री मेला : दीनदयाल शोध संस्थान की ओर से दीपदान मेला में आने वाले किसानों को खेती बारी व ग्रामोद्योग से जुड़ी बारीकियों से रुबरू कराया जाता है।
पुत्र जीवा वृक्ष पूजा : दीपदान मेला में एक प्रमुख आयोजन पुत्र जीवा वृक्ष की पूजा का होता है। प्रमोद वन में इस वृक्ष का पूजन कर महिलाएं पुत्र की कामना करती हैं।