रामनगर। विश्व विख्यात रामलीला में शुक्रवार को भरत के भातृप्रेम की लीला सामाजिक आदर्शों के ऊंचे मानकों पर स्थापित रही। राम को वन भेजने वाली अपनी मां कैकेयी को वह अनेक उलाहनाएं देते हैं। वह राम को मनाने के लिए अयोध्या से निकल पड़ते हैं। भरत आगमन की लीला देखने के लिए लीला प्रेमियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
लीला की शुरुआत ननिहाल से भरत के अयोध्या पहुंचने से होती है। भरत के आने की खबर सुनते ही कैकेयी आरती ले कर दौड़ती हैं। भरत को राजमहल ले जाती हैं और मायके का हालचाल पूछती हैं। इस बीच महल सूना सूना देख कर भरत जी सीता -राम और लक्ष्मण के बारे में पूछते हैं। कैकयी बड़े ही कुटिल भाव से बताती हैं कि महाराज तो सूरधाम चले गए और राम को भी वन जाना पड़ा। ऐसे में राजपाट अब सब तुम्हारे हवाले है। इतना सुनते ही भरत जी बरस पडे़ और कहा कि पापिन तुमने तो कुल का नाश कर दिया। ऐसा ही करना था तो मुझे जन्म होते ही क्यों नहीं मार दिया।
इतने में कुबड़ी मंथरा सजधज कर के साथ आती है तभी शत्रुघ्न उसे देखते ही बरस पड़ते हैं। उसके बाल पकड़ कर घसीटते हैं। भरत को दया आ जाती है और उसे छुड़ा देते हैं। भरत व्याकुल हो कर माता के पास बैठ कर रुदन करते हैं। माता समझाती हैं। भरत जी कहते हैं कि तुम सब ठीक से रहना हम श्रीरामचंद्र जी के पास जा रहे है। माता की आज्ञा ले कर दोनों भाई तमसा नदी के किनारे पहुचते हैं। रात्रि विश्राम करने के बाद शृंगवेरपुर पहुंचते हैं। भरत जी शृंग्वेरपुर को देख गंगा जी को प्रणाम करते हैं । भारद्वाज जी भरत जी से कहते हैं- हे तात अब बहुत मत सोचो श्रीरामजी के चरण कमल देखते ही दुख मिट जाएगा। भारद्वाज जी कंदमूल मंगवाते हैं। कंदमूल फल खा कर सभी विश्राम करते हैं। लीला के 11वें दिन श्रीअवध में भरतागमन, सभा, श्रीभरत का चित्रकूट प्रयाण, निषाद मिलन, गंगा अवतरण, भरद्वाज आश्रम निवास आदि का मंचन किया गया।