जब श्रीराम पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण और अपने प्रिय हनुमान जी के साथ चौदह वर्ष के वनवास से लौटे तो अयोध्या वासियों ने उनका ख़ूब स्वागत किया। बाद में बड़ी धूम-धाम से उनका राजतिलक किया गया। बड़े मान-सम्मान के साथ उन्हें अयोध्या का राजा बनाया गया। राज गद्दी पर विराजित होने के बाद उन्होंने भाई लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि सदैव भोजन करने से पहले ये देखो कि हमारे द्वार पर कोई भूखा तो नहीं बैठा है।
एक दिन की बात है लक्ष्मण जी ने श्रीरामचन्द्र जी से कहा, ”मैं अभी आवाज लगाकर आया हूं, कोई भी भूखा नहीं है।” श्रीरामचंद्र जी ने कहा,” दोबारा जाओ और जोर से आवाज़ लगाओ शायद कोई भूखा रह गया हो।”
श्रीरामचन्द्र जी का आदेश पालन करते हुए लक्ष्मण जी दोबारा बाहर गए और उन्होंने जोर से आवाज़ लगाई तो कोई आदमी तो नहीं लेकिन एक कुत्ते को लक्ष्मण जी ने रोते हुए देखा। अंदर आ कर उन्होंने श्रीरामचन्द्र जी से कहा, ”बाहर कोई व्यक्ति भूखा नहीं है बल्कि एक कुत्ता अवश्य रो रहा है।” श्रीरामचन्द्र जी ने उस कुत्ते को अंदर बुलाया और कुत्ते से पूछा, ”तुम रो क्यों रहे हो?” कुत्ते ने कहा, ”एक ब्राह्मण ने मुझे डंडा मारा है।”
श्रीरामचन्द्र जी ने ब्राह्मण को बुलवाया और उससे पूछा, ” क्या यह कुत्ता सही बोल रहा है?” ‘ ब्राह्मण ने कहा, ‘हां यह मेरे रास्ते में सो रहा था इसलिए मैंने इसे डंडा मारा है। यह कुत्ते जहां-तहां लेट जाते हैं, इन्हें डंडे से ही मारना चाहिए।
श्रीरामचन्द्र जी समझ गए कि ब्राह्मण की ही गलती है परंतु ब्राह्मण को क्या कहें सो उन्होंने कुत्ते को पूछा, ”ब्राह्मण ने तुम्हें डंडा मारा तो तुम क्या चाहते हो?”
कुत्ते ने कहा, ‘भगवान इसे मठाधीश बना दिया जाए।”
कुत्ते की बात सुनकर भगवान मुस्करा दिए और मुस्कराते हुए कुत्ते से पूछा, ”इस ब्राह्मण ने तुम्हें डंडा मारा बदले में तुम इन्हें मठाधीश बनाना चाहते हो। मठाधीश बनने से इनकी बहुत सेवा होगी, काफी चेले बन जाएंगे।”
श्री राम ने पूछा, ”इससे तुम्हारा क्या फायदा होगा।”
कुत्ता बोला, मैं भी मठाधीश था। मुझ से कुछ गलत काम हुआ आज मैं कुत्ते की योनि में हूं और लोगों के डंडे खा रहा हूं। ये भी मठाधीश बनेगा फिर कुत्ते की योनि में जाएगा, फिर लोगों के डंडे खाएगा तो इसकी सजा पूरी हो जाएगी।