भगवान हनुमान के होते हुए काल कभी अयोध्या में प्रवेश नहीं कर पाते थे। इसलिए जिस दिन काल ने अयोध्या आना था श्री राम ने भगवान हनुमान को अयोध्या के मुख्य द्वार से दूर करने के लिए एक योजना बनाई। श्री राम ने अपनी अंगूठी महल के फर्श में आयी एक दरार में डाल दी और हनुमान जी को आदेश दिया कि वह उस अंगूठी को उस दरार में से बाहर निकाले।
भगवान हनुमान ने उस अंगूठी को ढूंढने की कोशिश की, पर न मिलने पर उन्होंने स्वयं उस दरार जितना आकार ले लिया और फिर अंगूठी को ढूंढने लग गए। जब भगवान हनुमान उस दरार के अंदर गए तब उन्हें ज्ञात हुआ कि जहां श्री राम ने उन्हें भेजा है, वो कोई दीवार नही बल्कि एक सुरंग है। वह सुरंग नाग लोक की तरफ जा रही थी। भगवान हनुमान उस सुरंग के अंदर गए तथा वहां जाकर वे नागों के राजा वासुकि से मिले।
वासुकि हनुमान जी को नाग लोक के मध्य में ले गए। नाग लोक के मध्य में अंगूठियों का एक विशाल पहाड़ था। अंगूठियों के उस विशाल पहाड़ को दिखाते हुए वासुकि ने भगवान हनुमान जी को कहा कि यहां उन्हें श्री राम की अंगूठी मिल जाएगी। अंगूठियों के विशाल पर्वत को देख कर हनुमान जी सोच में डूब गए कि इतने विशाल अंगूठियों के ढेर से वह श्री राम की अंगूठी कैसे ढूंढेंगे।
जैसे ही हनुमान जी ने पहली अंगूठी उठायी तो देखा कि यह श्री राम की अंगूठी है। परन्तु उन्हें हैरानी तब हुई जब उन्होंने दूसरी अंगूठी को उठा कर देखा तो वह भी श्री राम की ही थी। यह सब देख कर हनुमान जी को कुछ पल के लिये कुछ समझ नही आया कि उनके साथ क्या हो रहा है।
जब हनुमान जी कुछ समझ नही पा रहे थे, वासुकि हनुमान जी के पास आये। उन्हें देखकर वासुकि मुस्कुराये और हनुमान जी को समझाने लगे कि पृथ्वी लोक ऐसा लोक है जहां जो भी आता है उसे एक दिन अपना सब छोड़ कर वापिस लौटना होता है। उसके वापिस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है। वासुकि की बाते कुछ कुछ हनुमान जी की समझ में आने लगीं। परन्तु पूरी बात उन्हें तब समझ में आयी जब वासुकि ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा कि श्री राम भी पृथ्वी लोक छोड़ कर एक दिन विष्णु लोक अवश्य जायेंगे।
अब हनुमान जी समझ गए थे कि उनको अंगूठी ढूंढने के लिए भेजना, श्री राम द्वारा बनाई गयी एक योजना थी। वासुकि की बताई बात से हनुमान जी को स्पष्ट हुआ कि श्री राम ने उन्हें इसलिए नाग लोक भेजा ताकि हनुमान जी अपने कर्तव्य से भटक जाएँ तथा काल अयोध्या में प्रवेश कर के श्री राम को उनके जीवनकाल की समाप्ति की सूचना दे सके। हनुमान जी अब जान चुके थे कि जब वह नाग लोक से निकल कर अयोध्या जायेंगे उन्हें वहां उनके श्री राम नही मिलेंगे।