जब रावण पंचवटी (महाराष्ट्र में नासिक के पास) से माता सीता का अपहरण कर श्रीलंका ले उड़ा, तब राम और लक्ष्मण जंगलों की खाक छानते हुए माता सीता की खोज कर रहे थे। ऐसे कई मौके आए, जब उनको हताशा और निराशा हाथ लगी।
इस दौरान कई घटनाएं घटीं। एक और जहां सीता की खोज में राम वन-वन भटक रहे थे तो दूसरी और किष्किंधा के दो वानरराज भाइयों बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध हुआ और सुग्रीव को भागकर ऋष्यमूक पर्वत की एक गुफा में छिपना पड़ा। इस क्षेत्र में ही एक अंजनी पर्वत पर हनुमान के पिता का भी राज था, जहां हनुमानजी रहते थे।
जब रावण पंचवटी (महाराष्ट्र में नासिक के पास) से माता सीता का अपहरण कर श्रीलंका ले उड़ा, तब राम और लक्ष्मण जंगलों की खाक छानते हुए माता सीता की खोज कर रहे थे। ऐसे कई मौके आए, जब उनको हताशा और निराशा हाथ लगी।
इस दौरान कई घटनाएं घटीं। एक और जहां सीता की खोज में राम वन-वन भटक रहे थे तो दूसरी और किष्किंधा के दो वानरराज भाइयों बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध हुआ और सुग्रीव को भागकर ऋष्यमूक पर्वत की एक गुफा में छिपना पड़ा। इस क्षेत्र में ही एक अंजनी पर्वत पर हनुमान के पिता का भी राज था, जहां हनुमानजी रहते थे।
बाली-सुग्रीव का किष्किंधा राज्य : तुंगभद्रा नदी दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप की एक पवित्र नदी है, जो कर्नाटक तथा आंध्रप्रदेश में बहती है। यह नदी छत्तीसगढ़ के रायपुर के निकट कृष्णा नदी में मिल जाती है। प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हम्पी तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। इस नदी का जन्म तुंगा और भद्रा नदियों के मिलन से होता है, जो इसे तुंगभद्रा नदी का नाम देती है। उद्गम का स्थान गंगामूल कहलाता है, जो श्रृंगगिरि या वराह पर्वत के अंतर्गत है।
हनुमान ने आगे कहा- मन को हरण करने वाले आपके सुंदर, कोमल अंग हैं और आप वन की दुःसह धूप और वायु को सह रहे हैं। क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश- इन तीन देवताओं में से कोई हैं या आप दोनों नर और नारायण हैं?
श्रीरामचंद्रजी ने कहा- हम कोसलराज दशरथजी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी। यहां (वन में) राक्षस ने मेरी पत्नी जानकी को हर लिया। हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! आप अपनी कथा कहिए, आप कौन हैं?
राम ने हनुमान को हृदय से लगाकर कहा- हे कपि! सुनो, मन में ग्लानि मत मानना। तुम मुझे लक्ष्मण से भी दूने प्रिय हो। सब कोई मुझे समदर्शी (प्रिय-अप्रिय से परे) कहते हैं, पर मुझको सेवक प्रिय है, क्योंकि मुझे छोड़कर उसको कोई दूसरा सहारा नहीं होता। श्रीराम को 5 जनवरी 5089 ईसा पूर्व को वनवास हुआ। उस समय उनकी आयु 25 वर्ष थी। वनवास के 13वें साल में उनका खर और दूषण से युद्ध हुआ था। यह तिथि 7 अक्टूबर 5077 ईस्वी पूर्व को आती है तब अमावस्या थी।
इस वर्ष में श्रीराम की मुलाकात हमनुमानजी से हुई थी। हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद जिस रोज भगवान राम ने बाली का वध किया था तब अषाड़ मास की अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण था। नासा के प्लेटिनियम सॉफ्टवेयर अनुसार यह तिथि 3 अप्रैल 5076 ईस्वी पूर्व की निकलती है।