विवाह के बाद मुंह दिखाई की रस्म निभाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस रस्म में पति अपनी पत्नी का चेहरा देखने के बदले में उसे कोई ना कोई उपहार देता है.
त्रेतायुग में भी जब अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम और राजा जनक की पुत्री सीता का विवाह हुआ था तो विवाह के बाद भगवान राम ने भी माता सीता को मुंह दिखाई पर एक अनमोल उपहार दिया था. जिसे पाकर सीता मैया बेहद प्रसन्न हुई थीं.
आखिर श्रीराम ने ऐसा कौन सा उपहार अपनी पत्नी सीता को मुंह दिखाई के तौर पर दिया था चलिए हम रामायण की इस पौराणिक गाथा से आपको रूबरू कराते हैं.
मुंह दिखाई की रस्म –
वाटिका में हुई थी सिया-राम की पहली मुलाकात
भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम को मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है. भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह के बारे में रामायण में एक बहुत ही सुन्दर प्रसंग मिलता है.
रामायण में यह बताया गया है कि श्रीराम और माता सीता की पहली मुलाकात वाटिका में हुई. जहां सीता जी मां गौरी की पूजा करने के लिए आती हैं और श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र के लिए फूल लेने पहुंचते हैं.
वाटिका में ही दोनों पहली बार एक-दूसरे को देखते हैं और मोहित हो जाते हैं. माता सीता पहली मुलाकात से ही श्रीराम को मन ही मन पसंद करने लगती हैं और उन्हें पति के रुप में पाने के लिए मां गौरी से प्रार्थना करती हैं.
सिया राम के विवाह में शामिल हुए सभी देवी-देवता
माता सिता की प्रार्थना मां गौरी स्वीकार करती हैं और उन्हें श्रीराम पति के रुप में प्राप्त होते हैं. हालांकि स्वयंवर की शर्त और भगवान राम की कुंडली में मौजूद मांगलिक योग जैसी कई बाधाएं दोनों के विवाह के दौरान आती हैं.
लेकिन ये बाधाएं भी इनके विवाह को नहीं रोक पाती हैं और भगवान राम का सीता से विवाह हो जाता है. इस विवाह में सभी देवी-देवता वेष बदलकर शामिल होते हैं और दोनों के विवाह के साक्षी बनते हैं.
मुंह दिखाई पर श्रीराम ने दिया सीता को ये उपहार
विवाह के बाद पहली बार माता सीता और भगवान राम की मुलाकात होती है और मुंह दिखाई की रस्म शुरू होती है. इस रस्म के दौरान श्रीराम ने माता सीता को कोई भौतिक उपहार देने के बजाय एक ऐसा वचन दिया जिससे माता बेहद प्रसन्न हो गईं.
इस वचन के अनुसार श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता से वादा किया कि उनके जीवन में सीता के अलावा कोई अन्य स्त्री नहीं आएगी और उन्होंने जीवन भर इस वचन का पालन किया.
गौरतलब है कि मुंह दिखाई की रस्म में अपनी पत्नी सीता को आजीवन एक पत्नीधर्म का पालन करने का वचन देकर ही श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए.