शिव पुराण के अनुसार महावीर हनुमान जो को शिव जी का रौद्र अवतार माना जाता है। कहते हैं कि त्रेतायुग में श्रीराम की सहायता करने और पापियों का नाश करने के लिए हनुमान जी धरती पर अवतरित हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी केवल एकमात्र एेसे देव थे, जिन्होंने एेसे 6 काम किेए थे। जो उनके बिना संपन्न नहीं हो सकते थे। जी हां, पुराणों में इस बात का वर्णन मिलता है कि रामायण काल के समय एेसे 6 काम थे, जो यदि हनुमान जी नहीं करते तो कोई और नहीं कर पाता। आईए आपको बताते हैं, कौन से हैं वो 6 काम।
समुद्र लांघना
माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब जामवंत ने हनुमान जी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमान जी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।
माता सीता की खोज
समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमान जी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमान जी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। अंत में अशोक वाटिका में जब हनुमान जी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमान जी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
अक्षय कुमार का वध व लंका दहन
माता सीता की खोज करने के बाद हनुमान जी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमान जी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमान जी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकड़ने आए तो उन्होंने उनका भी वध कर दिया। रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमान जी ने उसका वध भी कर दिया। इसके बाद हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका नगरी में जाकर माता सीता को खोज करना व अनेक राक्षसों का वध करके लंका को जलाने का साहस हनुमान जी ने बड़ी ही सरलता से कर दिया।
विभीषण को अपने पक्ष में करना
जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उन्होंने किसी के मुख से भगवान श्रीराम का नाम सुना। तब हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और विभीषण के पास जाकर उनका परिचय पूछा। अपना परिचय देने के बाद विभीषण ने हनुमान जी से उनका परिचय पूछा। तब हनुमानजी ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमान जी ने कहा कि भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं। जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमान जी ने ही विभीषण का साथ दिया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
संजीवनी बूटी
युद्ध के दौरान रावण के पराक्रमी पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर कई करोड़ वानरों का वध कर दिया। ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से ही भगवान श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमान जी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ और कैलाश शिखर का दर्शन होगा। इन दोनों के बीच में एक औषधियों का पर्वत दिखाई देगा। तुम उसे ले आओ। उन औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व अन्य सभी घायल वानर पुन: स्वस्थ हो जाएंगे। जामवंत जी के कहने पर हनुमान जी तुरंत उस पर्वत को लेने उड़ चले। रास्ते में कई तरह की मुसीबतें आईं, लेकिन अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान उस औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा ले आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।
अनेक राक्षसों का वध
युद्ध में हनुमान जी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमान जी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमान जी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।