दरअसल, ज्योतिषों के मुताबिक, शुक्रास्त होने के बाद विवाहों को शुभ नहीं माना जाता। ऐसे विवाह ज्योतिष द्वारा बाधित किए गए हैं। जबकि हकीकत यह है कि विष्णु के अवतार भगवान राम का विवाह जानकी के साथ शुक्रास्त में ही हुआ था। ज्योतिष वहां भी खरा उतरा। भगवान राम पूरा दांपत्य जीवन ही असफल रहा और सीता का सहचर्य भगवान राम मिल ही नहीं पाया।
ज्योतिषाचार्य और भारतीय प्राच्य विद्या सोसायटी के अध्यक्ष डा. प्रतीक मिश्रपुरी ने अपनी टीम के साथ उन विवाहों पर काम किया है जो शुक्र अस्त होने पर हुए हैं। डा. मिश्रपुरी ने बताया कि राम का विवाह त्रेता युग में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुआ था। तब शुक्र अस्त थे।
परिणाम यह निकला की राम का पूरा वैवाहिक जीवन असफल रहा। राम के अन्य तीन भाइयों का विवाह भी राम के तत्काल बाद हो गया था, तब भी शुक्र अस्त था। यही वजह है कि अन्य तीन भाइयों का वैवाहिक जीवन भी कष्टमय रहा। राम के वन जाने के बाद भरत ने साधु वेश धारण कर कुटिया में 14 वर्ष काटे।
लक्ष्मण तो राम के साथ वन ही चले गए और उनकी पत्नी वियोग भोगती रही। शत्रुघ्न की पत्नी भरत की पत्नी के सेवा में लगी रही। राम के वन से आने के बाद सीता फिर वनवास पर चली गई और आगे चलकर राम और सीता दोनों ने ही प्राण त्याग दिए। परिणाम स्वरूप तीनों भाइयों की पत्नियां अपनी बहन सीता के वियोग में विरक्तिनी हो गई। इस तरह शुक्रास्त में विवाह होना सबको भारी पड़ा।
डा. मिश्रपुरी ने बताया कि शुक्र उदित्त रहने से वैवाहिक जीवन मजबूत होता है। जन्मकुंडली में भी यदि शुक्र उचित स्थान पर न हो तो कष्ट आते हैं। ज्योतिष की दृष्टि शुक्रास्त के समय विवाह नहीं करना चाहिए। राम का समूचा प्रकारण विचित्र रामायण में वर्णित किया गया है।