इस संसार सागर में आने के बाद सत्य और अहिंसा को धारण किये हुए इंसान को मर्यादित जीवन जीना पड़ता है। जिससे उस मानव की प्रतिष्ठा और मान की पुष्टि होती है. इस जगत को सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि का पाठ पढानें और मर्यादित जीवन व्यतीत करने के लिए भगवान राम स्वयं इस पृथ्वी लोक में जन्म लेकर मानव को इन सभी से अवगत कराया था.
हमारे शास्त्रों में मर्यादाएं से जुडी बहुत सी बातें वर्णित हैं। ये सभी बातों का मुख्य उद्देश व्यक्ति को उसके जीवन में सद-मार्ग को हासिल करना सत्य अहिंसा, धर्म को जानना, नीति-अनीति का भेद जानना आदि है, और इन सभी को अपनाकर इस संसार रूपी सागर से मुक्ति प्राप्त करना. भगवान ने इस पृथ्वी लोक में जन्म लेकर मानव को सद कर्म की प्रधानता का पाठ पढ़ाया था.
जिससे व्यक्ति इन सभी बातों को अपने जीवन में उतारकर सद गति हासिल कर सके. और इस संसार के आवागमन से मुक्त हो सके. मानव जीवन की प्रमुख मर्यादाएं-सत्य, अहिंसा, मन, वाणी, कर्म, परोपकार, प्रत्येक मानव प्राणी को इन सभी मर्यादाओं का पालन करना चाहिए .हमेशा अहिंसा को धारण करें, जो कि मानव का परम धर्म है, किसी को कष्ट न दें। व्यक्ति के अंदर हिंसा का भाव अज्ञानता के कारण आता है, इसे त्याग दें।
सभी जीवों के साथ दया का भाव रखें, किसी को न सताएं, दूसरों के दुःख दर्द को समझें उसकी सहायता करें, यह मानव का सबसे अहम धर्म माना गया है. सत्य को हमेशा धारण करें. हम जानते है की जीवन में बहुत से उतार चढाव आते है,.पर उनसे घबराये नहीं हमेशा सत्य का मार्ग धारण करें, जीत आपकी ही होगी .
गलत कार्यों, विचारों का त्याग करें. बह्मचर्य को धारण करने से आत्मा में तेजस्विता और इंद्रियों में शक्ति आती है। यदि आपका मन शुद्ध है तो आप हमेशा सद मार्ग की ओर जायेगें प्रत्येक इंद्रि का संयम करने से आलस्य दूर होकर दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। मन की पवित्रता अतिआवश्यक है. जितनी तन की नहीं, मन के विचारों की पवित्रता से व्यक्ति को आगे बढ़नें का पथ प्रदर्शित होता है.