रावण बहुत विद्वान था। धार्मिक पुस्तकों में उसे प्रखांड पंडित की उपाधि भी दी गई है। लेकिन कुछ अवगुणों के कारण वह अपने परिवार के साथ ही सोने की लंका को भी गंवा बैठा और आज भी उसे एक दुराचारी और पापी की तरह ही देखा जाता है। रावण का सर्वनाश करने से पहले श्रीराम ने उसे अनेक अवसर दिए थे ताकि वह अपना आचरण सुधार सके। इन्हीं में से एक मौका वह था, जब अंगद रावण को उसी की सभा में ऐसी 14 बातों के बारे में बताते हैं, जो इंसान के सर्वनाश का कारण बनती हैं…
वाम मार्गी होना
वाम मार्गी होने का अर्थ है, सही दिशा में चल रहे काम में भी कमी निकलते रहनेवाला व्यक्ति। जिसका काम ही सिर्फ कमियां निकलाना हो। ऐसा व्यक्ति कभी खुश नहीं रह पाता और उसके अंदर की घृणा उसे ही कमजोर करती रहती है।
संत,शास्त्र और प्रभु विरोधी होना
जो संतों का विरोध करे, शास्त्रों को पाखंड कहे और ईश्वरीय सत्ता में यकीन न रखता हो। ऐसा व्यक्ति अक्सर अकेला और नकारात्मकता से भरा होता है। संतों को बिना जानें, शास्त्रों को बिना पढ़े और प्रभु की महिमा को जाने बिना खुद की श्रेष्ठ समझनेवाला मृत प्राय होता है।
तनु पोषक होना
जो केवल अपने हित के लिए सोचे। हर चीज और सूचना खुद तक ही सीमित रखना चाहे। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के किसी काम नहीं आते, इसलिए इन्हें मृत के समान ही समझना चाहिए।
काम वासना के अधीन होना
जिस व्यक्ति का खुद पर नियंत्रण न हो। अपनी इंद्रियों के वशीभूत होकर जो पाप कर्म और कामवासना में लीन रहता हो, ऐसा व्यक्ति समाज विरोधी और मरे के समान होता है।
मूढ़ व्यक्ति
ऐसा इंसान जो अपने जीवन के हर छोटे-बड़े कर्म और फैसलों के लिए दूसरों पर निर्भर हो, वह भी मृत व्यक्ति के समान ही होता है। क्योंकि ऐसे लोग समाज के विकास में कोई योगदान नहीं दे पाते।
बदनाम व्यक्ति
जो लोग अपने कर्मों और सोच के कारण बदनाम हों, वे मृत व्यक्ति के समान हैं। बुरे कर्मों के कारण ऐसे लोगों से कोई संबंध नहीं रखना चाहता, जिस कारण इन्हें समाज का हिस्सा ही नहीं माना जाता।
रोगी रहना
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है, जो व्यक्ति बीमारियों से कभी उबर ही न पाए, वह भी मरे हुए व्यक्ति के समान ही है। क्योंकि जीवित होते हुए भी वह जीवन के आनंद से दूर रह जाता है।
क्रोध करते रहना
जिस व्यक्ति का स्वभाव ही क्रोधी हो वह मरे के समान है।गलत बात पर क्रोध करनेवाले और बुरे के खिलाफ आवाज उठानेवाले इसमें शामिल नहीं हैं। जो लोग स्वभाव से ही क्रोधी होते हैं, उनमें एक अलग तरह की नकारात्मकता देखी जाती है।
अघखानी होना
पाप कर्म से कमाए गए पैसे से अपना और परिवार का पालन-पोषण करनेवाला व्यक्ति भी मरे हुए व्यक्ति के समान होता है। क्योंकि जैसा खाओ अन्न, वैसा बने मन, की तरह पाप कर्मों से अर्जित भोजन खाने पर उस व्यक्ति के परिवार में वैसे ही संस्कार आ जाते हैं।