सावन के मंगलवार तथा शनिवार को गणेश वंदना, शिवोपसाना के साथ राम नाम लिखने से हनुमत कृपा भी प्राप्त होती है। शनि, राहु, केतु जैसे अनिष्ट ग्रहों की पीड़ा से बचने के लिए सबसे सरल, सहज और व्यय शून्य उपाय है, राम नाम लेखन।लाल रंग की कलम से कम से कम 108 बार राम नाम लिखना चाहिए अथवा 108 के ही क्रम में 1008 इत्यादि बार लिखें। सावन के महीने में जो श्रीराम की पूजा करता है, वह भी शिवजी को ही प्राप्त होती है।
जब हनुमान जी राम जी को ध्याते हैं, तो वह पूजा भी शिव को ही समर्पित हुई। अगर राम नाम के लिखित जप के दौरान कम से कम 108 मनकों की माला फेरी जाए, तो वह शिव के खाते में ही जाती है और हमारा पुण्य खाता बड़ता जाता है। वैसे भी कहा गया है, ‘‘कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं तारा’’, के आधार पर मानव को भगवान का सुमिरन और भजन अवश्य करना चाहिए।
इसके साथ ही गरीबों की मदद का संकल्प लेना चाहिए। राम नाम की महिमा तो हर युग में रही है, लेकिन कलियुग में तो कुछ खास ही है। जप-तप, योग-जुगत के सारे पराक्रम राम नाम में समाए हैं। राम नाम को महामंत्र राज कहा गया है, तनावरहित जीवन व्यतीत करने के लिए, परिवार में, घर में सुख-शांति प्राप्त करने के लिए राम नाम एक सरल और अचूक औषधि है। जीवन में जितना ज्यादा राम नाम लिखते जाएं, कष्ट उतना ही कम होता जाएगा।
शास्त्रों के अनुसार, हर व्यक्ति को अपनी कमाई का कुछ न कुछ भाग धार्मिक कार्यों, मानव सेवा, सार्वजनिक कार्यों अथवा गरीब याचकों की सहायता के रूप में अवश्य खर्च करना चाहिए। कहते हैं कि मानव के आड़े वक्त (बुरे समय में) में उसके द्वारा किया गया दान-पुण्य ही काम आता है। कभी-कभी दुर्घटना से जब कोई आदमी बच जाता है, तो घर की गृहणियां कहती हैं कि न जाने कौन-सा पुण्य कर्म किया, जो दुर्घटना से बच गए। भगवान राम का नाम स्वयं लिखना और दूसरों से लिखवाने के लिए प्रेरित करने वाले की प्रभु चोट-चपेट और दुर्घटना आदि से रक्षा करते हैं।
संकट क्या होता है, यह सच्चे राम भक्त जानते ही नहीं! ऐसा भी देखा गया है कि कभी-कभी व्यक्ति को अचानक से ऐसी उपलब्धि हासिल हो जाती है, जिसके बारे में न तो उसने कभी सोचा होता है और न ही वह उसके काबिल होता है। उससे भी ज्यादा योग्य व्यक्ति उस उपलब्धि अथवा पुरस्कार से वंचित रह जाता है। उसको यह उपलब्धि राम नाम के पुण्य प्रताप से ही प्राप्त होती है।