चंबल,बनास और सीप नदियों के त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थापित रामेश्वर महादेव मंदिर हजारों साल पुराना है। जिसकी स्थापना भगवान राम द्वारा की गई थी। जब भगवान राम ने शंकर भगवान के शिवलिंग को स्थापित किया। तब भगवान शंकर प्रकट हुए। यही वजह है कि इस महादेव मंदिर का नाम रामेश्वर पड़ा। हर मनोकामना पूर्ण करने वाले इस मंदिर पर हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन वृहद मेले का आयोजन होता है। यह मेला मप्र और राजस्थान दोनों जिलों की सीमा में लगता है। मप्र की सीमा में लगने वाले मंदिर के दर्शन के लिए श्योपुर जिले सहित आसपास के जिलों से लाखों लोग पहुंचते हैं।यही हुआ श्रीराम का पुत्र लव कुश संग युद्ध
लोकोक्ति है कि राजस्थान प्रांत की सीमा में मौजूद सीतावाड़ी में ऋषि वाल्मीकि का आश्रम था, जहां माता सीता रहा करती थी और जहां लव और कुश ने जन्म लिया। मप्र राजस्थान की सीमा में ही भगवान राम और उनके पुत्रों के बीच युद्ध हुआ। जिसके बाद माता सीता वहां से रामेश्वर की सीमा की तरफ आ गईं और यहीं पर भगवान राम को मां सीता मिली।
राजा राम द्वारा दिए बनवास के बाद माता सीता और भगवान राम के मिलन के इस मौके पर भगवान शंकर सहित सभी देवता गण मौजूद रहे और यहीं पर मां सीता भगवान राम को उनके पुत्र लव और कुश को संभलाकर चली गईं और श्योपुर की सीमा से दूर जाकर धरती में समा गई। इसके बाद ही भगवान राम द्वारा यहां पर महादेव मंदिर की स्थापना की गई। त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा स्थापित किए गए महादेव मंदिर पर जब आसपास बस्ती बसी, तो लोगों का जाना शुरू हुआ।
भगवान परशुराम ने की तपस्या
रामेश्वर त्रिवेणी संगम भगवान परशुराम की तपोस्थली के तौर पर भी विख्यात है। इसको लेकर लोकोक्ति है कि भगवान परशुराम मातृहत्या के संताप से व्याकुल होकर रामेश्वर धाम में त्रिवेणी संगम के तट पर पहुंचे और यहां अनेक वर्षों की घोर तपस्या के फलस्वरूप उन्हें चिरशांति मिली। चंबल नदी के किनारे प्राचीन परशुराम घाट बना हुआ है। इस स्थान पर भगवान परशुराम के पदचिह्न अंकित है।