
मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां त्रेतायुग से ही शनिदेव की प्रतिमा विराजमान है। इसका निर्माण आसमान से गिरे एक उल्कापिंड से हुआ है। इस शनि मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य ने करवाया था। बाद में कई शासकों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, रावण ने एक बार शनिदेव को भी कैद कर लिया था। तब शनिदेव ने हनुमानजी को संकेत किया था कि अगर वे उन्हें मुक्त करा दें तो वे रावण के नाश में अहम भूमिका निभाएंगे।
हनुमानजी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराया। कैद में रहने के कारण शनिदेव काफी दुर्बल कमजोर हो चुके थे। इसलिए उन्होंने एक सुरक्षित स्थान पर भेजने की प्रार्थना की। इसलिए हनुमानजी ने अपने बल से शनिदेव को आकाश में उछाल दिया और वे यहां आ गए।
तब से शनिदेव यहां विराजमान हैं। यह इलाका भी शनिक्षेत्र के नाम से मशहूर हो गया। यहां शनिवार को दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और न्याय के लिए प्रार्थना करते हैं।
यह भी कहा जाता है कि लंका से प्रस्थान करते समय शनिदेव ने लंका को तिरछी दृष्टि से देखा था। इसी का नतीजा था कि रावण का कुल सहित नाश हो गया। जब शनिदेव यहां आए तो उल्कापात जैसा प्रभाव हुआ। आज भी उस घटना का यहां निशान बना हुआ है।