भगवान श्रीराम की कथा का सबसे प्रमाणिक ग्रंथ ‘वाल्मीकि रामायण’ है। वाल्मीकि रामायण के ‘उत्तरकांड’ में वर्णित है, ‘जब रावण के भाई कुंभकर्ण ने गोवर्ण में कठिन तप किया तब ब्रह्माजी प्रसन्न हुए थे।’ देवता जानते थे यदि कुंभकर्ण को मनचाहा वर मिल गया तो यह संपूर्ण मानवजाति के साथ देवताओं के लिए भी संकट का प्रश्न बन सकता है।
ऐसे में देवताओं ने माता सरस्वती का स्मरण किया। उन्होंने देवताओं की बात सुनी। इस तरह वह कुंभकर्ण की जीभ पर विराजमान हो गईं। जब कुंभकर्ण ब्रह्माजी से वर मांगा, तो उसने बस इतना ही कहा, ‘मैं वर्षों से सोया नहीं हुआ हूं। इसलिए मुझे वर्ष में 6 माह चैन से सोने का वर दीजिए।’
कुंभकर्ण को यह वर देना नियति द्वारा निर्धारित था। वर देने से पहले ब्रह्माजी परेशान थे। कुंभकर्ण यदि रोज भोजन करेगा तो जल्दी ही संसार का भोजन खत्म हो जाएगा। ऐसे में सृष्टि का अंत भी हो सकता था।
इसलिए वह भी चाहते थे कि कुछ ऐसा ही हो, और फिर नियति द्वारा ऐसा ही हुआ यानी कुंभकर्ण ने 6 माह सोने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दे दिया।
सीता के अपहरण से था दुःखी
कुंभकर्ण अतिबलशाली दैत्य था। वह रावण द्वारा सीता जी के हरण की बात सुनकर दुःखी हुआ था। क्योंकि जब वह जागा तो श्रीराम वानर सेना सहित युद्ध के लिए लंका में मौजूद थे।
जब कुंभकर्ण जागा, तब तक रावण के कई बलशाली दैत्य मारे जा चुके थे। कुंभकर्ण ने रावण को सीता जी वापिस श्रीराम को लौटाने का आग्रह भी किया, लेकिन रावण ने कुंभकर्ण की बात को गंभीरता से नहीं लिया था।
श्रीराम हैं भगवान यह वह जानता था
श्रीराम चरित मानस के अनुसार धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कुंभकर्ण को पाप-पुण्य और धर्म-कर्म से कोई लेना-देना नहीं था। यही वजह थी स्वयं देवर्षि नारद ने कुंभकर्ण को तत्वज्ञान का उपदेश दिया था।
कुंभकर्ण को मालूम था कि राम, भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना असंभव है। उसने श्रीराम से युद्ध अपने बड़े भाई रावण के मान को रखने के लिए किया था।
रावण का मान रखते हुए, वह श्रीराम से युद्ध करने गया। अंत में श्रीराम ने उसका संहार किया और उसे मोक्ष मिल गया।
सोने की लंका में 4 हवाई अड्डे
जब कुंभकर्ण की मृत्यु हो गई तो रावण स्वयं श्रीराम से युद्ध करने पहुंचा। वह पुष्पक विमान में श्रीराम से युद्ध करने पहुंचा। यह वही विमान था जो उसने भाई कुबेर से छीन लिया था। और माता पार्वती को इसी विमान में अपरहरण करके लाया था।
बिना ईंधन का यह विमान चालक की इच्छा के अनुसार चलता था। आधुनिक खोज में ज्ञात हुआ है कि लंका में( वर्तमान श्रीलंका) रावण के पास चार हवाई अड्डे थे।इनमें से एक का नाम एक का नाम उसानगोड़ा जिसे हनुमानजी ने लंका को जला दिया था। शेष तीन हवाई अड्डे जो उस समय सुरक्षित थे वो क्रमशः गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला थे।