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यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। श्रद्धालु बताते हैं कि गांव में हर व्यक्ति स्वयं को भय से मुक्त समझता है। यहां के कण-कण में शनिदेव व्याप्त हैं। हर घर और प्रत्येक व्यक्ति पर उनकी नजर है। इसलिए जो भी व्यक्ति गलती करता है, उसे उसका फल जरूर मिल जाता है।
गांव में चोरी और बुरी नीयत से प्रवेश करने वाला व्यक्ति तो अतिशीघ्र दंड भोगता है। अत: लोग घरों पर ताले न लगाकर भी बेखौफ रहते हैं। गांव का इतिहास जानने वालों का दावा है कि शनिदेव का यह स्थान हजारों साल पुराना है। यहां मुख्य रूप से श्रद्धालु शनिदेव का दोष दूर करने और तेल अर्पित करने आते हैं।
जिस जातक की कुंडली में शनि का दोष है और जिसके शुभ काम शनि के कोप की वजह से बिगड़ रहे हैं, उन्हें यहां आकर पूजा करनी चाहिए। इससे उन्हें अतिशीघ्र लाभ मिलता है।
कहा जाता है कि यहां विराजमान शनिदेव दुष्टों को बहुत जल्द दंड देते हैं। उनके प्रकोप से दोषी का जीवन बहुत कष्टमय हो जाता है। इसलिए वे यहां आकर चोरी जैसे बुरे काम से दूर रहने में ही स्वयं का कल्याण समझते हैं।
यह भी कहा जाता है कि जो शनिदेव के इस धाम में आकर चोरी-डकैती जैसा कार्य करता है, वह गांव की सीमा से बाहर नहीं जा सकता। उससे पूर्व ही उसके जीवन में कोई भयंकर कष्ट आ जाता है।
इस गांव की पहचान शनिदेव के कारण है। यहां घरों के अलावा दुकान, डाकघर और बैंक पर भी ताला नहीं लगता। शनिवार व अमावस्या के दिन गांव में दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। यहां शनिदेव की जिस प्रतिमा का पूजन होता है, वह खुले आसमान के नीचे है।
शनिदेव हर मौसम में खुले आसमान के नीचे ही रहते हैं और उन पर कोई छाया नहीं की जाती। कहा जाता है कि जिसने भी इन पर छत बनाने का निश्चय किया, वह कभी अपने काम में सफल नहीं हो सका।