इसलिए अर्पित करते हैं 56 भोग

56bhog_09_01_2016भगवान को 56 भोग अर्पित करने की परंपरा सदियों पुरानी है। यह परंपरा प्राचीन काल से जारी है, इसका उल्लेख हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। कुछ विद्वानों का मत है कि यह परंपरा तब शुरु होगी, जब इतने ही पकवान बनते होंगें।

श्रीमद्भागवत पुराण में 56 भोग के बारे में विवरण है। इस पुराण के अनुसार, एक बार गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में सिर्फ सुबह स्नान किया। और मां कात्यायनी की आराधना की, क्योंकि वो श्रीकृष्ण जैसे पति की चाह रखती थीं। उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर उन्होंने 56 प्रकार का भोग श्रीकृष्ण को अर्पित किया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

ये हैं भगवान के 56 भोग

भात, दाल, चटनी, कढ़ी, दही, सिखरन, शरबत, बाटी, मुरब्बा, शर्करा युक्त, बड़ा, मठरी, फेनी, पूरी, खजला, घेवर, मालपुआ, चोला, जलेबी, मेसू, रसगुल्ला, पगी हुई, रायता, थूली, लौंगपूरी, खुरमा, दलिया, परिखा, सौंफ युक्त, बिलसारू, लड्डू, साग, अचार, मोठ, खीर, दही, गोघृत, मक्खन, मलाई, रबड़ी, पापड़, सीरा,लस्सी, सुवत,मोहन, सुपारी, इलायची, फल, तांबूल, मोहन भोग, नमक, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु, अम्ल। इन 56 भोगों का उल्लेख श्रीमद् भागवद् पुराण में मिलता है।

 
 
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