भगवान राम के अनुज थे ‘लक्ष्मण’ जो 14 वर्ष के वनवास के समय उनके हमेशा साथ रहे। श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे तो लक्ष्मण जी ‘शेषनाग’ के अवतार थे। लक्ष्मण जी की पत्नी का नाम ‘उर्मिला’ था। उनके दो पुत्र थे एक पुत्री थी उनका नाम था ‘अंगद’ और ‘चंद्रकेतु’ और पुत्री का नाम था ‘सोमदा’। इन्होंने ही क्रमशः ‘अंगदीया’ और ‘चंद्रकांता पुरी’ की स्थापना की थी।
रावण ने बताई थीं ये 3 बातें
जब श्रीराम ने रावण का अंत कर दिया, तब रावण कुछ समय तक जीवित रहा। इस दौरान श्रीराम ने लक्ष्मण कहा, अनुज तुम्हें रावण से कुछ ज्ञान लेना चाहिए नहीं तो यह मृत्यु के साथ चला जाएगा। लक्ष्णजी को रावण ने बताया था कि…
- शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर देना चाहिए और अशुभ को जितना टाल देना चाहिए।
- अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, मैं यह भूल कर गया।
- अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए।
स्वयं की बलि देने के लिए थे तत्पर
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राक्षस कबंध से युद्ध के दौरान लक्ष्मण श्री राम से कहते हैं, ‘हे राम! इस कबंध राक्षस का वध करने के लिए आप मेरी बलि दे दीजिए। मेरी बलि के बदले आप सीता तथा अयोध्या के राज्य को प्राप्त करने के पश्चात् आप मुझे स्मरण करने की कृपा बनाए रखना।’
उर्मिला, वनमाला और जितपद्मा
लक्ष्मण जी का विवाह माता सीता की बहिन उर्मिला से हुआ था। लेकिन वनमाला भी उनकी अर्धांगिनी थीं। हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित किंवदंती के अनुसार त्रेतायुग में महीधर नाम का राजा था। उसकी पुत्री का नाम वनमाला था। वनमाला ने बचपन में ही संकल्प लिया कि वो लक्ष्मण जी से विवाह करेंगी।
एक दिन वह अपनी सखियों के साथ वनदेवता की पूजा करने के लिए गईं। वह वन में उस बरगद के पेड़ के नीचे पहुंचीं जहां कभी राम, सीता और लक्ष्मण रह चुके थे। उन्होंने अपनी सखियों को वन विचरण करने भेज दिया और वनमाला उसी बरगद के नीचे आत्महत्या करने लगीं। संयोगवश वहां लक्ष्मण जी आ पहुंचे, और वनमाला को मरने से बचाया। लक्ष्मण जी ने वनमाला की व्यथा सुनी और उनका वरण किया।
लक्ष्मण जी से जुड़ी एक और किंवदंती प्रचलित है। जिसके अनुसार जितपद्मा भी उनकी पत्नी थीं। दरअलस क्षेत्रांजलिपुर नाम का एक राज्य था। वहां के राजा ने घोषणा की, कि जो कोई भी उस राजा पर प्रहार कर सकेगा, उससे वह अपनी पुत्री जितपद्मा का विवाह करेगा। श्रीराम, सीता और लक्ष्मण जी उस समय वनवास में थे।
जब उन्होंने यह घोषणा सुनी तो वह, वहां पहुंचे। श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण जी ने उस राजा को पराजित कर दिया। फलस्वरूप राजा ने जितपद्मा का विवाह लक्ष्मण जी से करना चाहा लेकिन सम्मानपूर्वक उन्होंने इस विवाह से मना कर दिया था।