यहां आज भी परशुराम से मिलने आती हैं मां रेणुका

शिमला। भगवान परशुराम शस्त्र और शास्त्र दोनों के ज्ञाता थे। वे सप्त चिरंजीवियों में से हैं। यह मान्यता है कि वे आज भी जिंदा हैं तथा तपस्या कर रहे हैं। भारत में एक स्थान ऐसा है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां माता रेणुका भगवान परशुराम मिलने आती हैं।
 
माता और पुत्र के प्रेम को समर्पित इस स्थान पर मेला भरता है। यह जगह हिमाचल प्रदेश में स्थिparshuram-55b5ffa9cc9c4_l-300x214त है और इसका नाम है श्री रेणुका जी का मेला। यहां हर साल कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर पूर्णिमा तक काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
 
कहते हैं कि भगवान परशुराम भी यहां अपनी मां रेणुका से आशीर्वाद लेते हैं। माता और पुत्र को समर्पित यह मेला पूरे विश्व में अनूठा कहा जा सकता है। यहां रेणुका झील के किनारे भगवान परशुराम एवं मां रेणुका का मंदिर भी स्थित है। 
 
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में भृगुवंशी ब्राह्मण हैहय वंशीय क्षत्रियों के राजपुरोहित थे। इसी ब्राह्मण कुल में महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। उनका विवाह इक्ष्वाकु वंश की कन्या रेणुका से हुआ था। 
 
 
जमदग्नि उच्चकोटि के तपस्वी थे। वे इस क्षेत्र में तपस्या करते थे। उनके पास कामधेनु नामक गाय थी। इस गाय को प्राप्त करने की लालसा अनेक लोगों को थी। उन्हीं में से एक राजा अर्जुन था जिसने भगवान दत्तात्रेय से हजार भुजाओं का वरदान प्राप्त किया था। उसका एक नाम सहस्त्रार्जुन व सहस्त्रबाहु भी था।
 
एक दिन सहस्त्रार्जुन ऋषि जमदग्नि के आश्रम में गया और उनसे कामधेनु गाय मांग ली। जब ऋषि ने कहा कि कामधेनु उनके पास कुबेर की धरोहर है तो सहस्त्रार्जुन को क्रोध आ गया और उसने ऋषि की हत्या कर दी। यह शोक समाचार सुनकर रेणुका राम सरोवर में कूद गईं। 
 
सरोवर ने उनकी देह को ढंकने का प्रयास किया तो उसका आकार महिला की देह जैसा हो गया। उसे आज रेणुका झील के नाम से जाना जाता है। उधर परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया तथा अपने योगबल से माता व पिता को जीवित कर दिया। 
 
इससे प्रसन्न होकर मां रेणुका ने उन्हें वचन दिया कि वे हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को उनसे मिलने आएंगी। माना जाता है कि तब से आज तक मां रेणुका ने अपना वचन निभाया है और वे हर साल अपने पुत्र से मिलने आती हैं। इस मेले में हिमाचल के अलावा अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं। 
 
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