कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर स्थित है। मां काली का विश्वविख्यात मंदिर है। यह मंदिर बीबीडी बाग से 20 किलोमीटर दूर है। एक समय था जब मां काली की पूजा करने में यहां पंडित सहमें से रहते थ। आखिर ऐसा क्यों होता था?
दरअसल, इसका मुख्यकारण था बंगाल की कुलीन प्रथा और जाति-पाति, जिसने पूरे बंगाल को इतना प्रभावित किया हुआ था कि यहां रहना उस समय काफी जोखिम भरा हुआ करता था।
उस समय एक शूद्र जमींदार की विधवा पत्नी रासमणि ने भव्य मंदिर का निर्णाण करवाना चाहा। जमींदार परिवार से होने के कारण उनके पास धन की कोई कमी न थी। मंदिर बनाया गया और मंदिर का नाम रखा गया दक्षिणेश्वर मां काली मंदिर, जो आज भी विद्यमान है।
कहते हैं रासमणि को एक रात मां काली ने सपने में दर्शन दिए और उनसे मंदिर बनवाने की बात कही। इस तरह रासमणि ने मंदिर का निर्माण शुरू किया। मंदिर निर्माण 8 वर्षों तक चलता रहा और करीब उस समय के हिसाब से 9 लाख रुपए खर्च हुए थे।
मंदिर तो बन गया लेकिन समस्या ये थी कि इस मंदिर में कोई पंडित पुजारी बनने को तैयार नहीं हो रहा था। क्योंकि बंगाल में उस समय के लिहाज से एक शूद्र स्त्री द्वारा मंदिर का निर्माण करवाना तत्कालीन राजा के मानदंडों के खिलाफ था।
इस मंदिर की ख्याति उस समय जब और फैल गई तब रामकृष्ण ने काली माता की आराधना करते हुए ही परमहंस की अवस्था प्राप्त की थी। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। रामकृष्ण खाना पीना छोड़कर आठों पहर माता काली को निहारते रहते थे।