कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन गाय की पूजा की जाती है। गौ ग्रास दान कर पुण्य अर्जित किया जाता है। इस पर्व का संबंध भगवान कृष्ण से है। जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाया और 8वें दिन इंद्र का अहंकार टूट गया तो उसी दिन से गोपाष्टमी का शुभारंभ हो गया। लोगों ने इंद्र को भेंट देने के बजाय गौ माता का पूजन प्रारंभ कर दिया। यह परंपरा आज तक चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार, सभी देवी-देवता गाय में वास करते हैं। इसलिए गाय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। जानिए, गाय के किस अंग में कौनसे देवता का वास है।
पद्म पुराण में कहा गया है कि गाय के मुख में चारों वेद बसते हैं। उसके सींगों में शिवजी तथा भगवान विष्णु का निवास है। गौ माता के पेट में कार्तिकेय निवास करते हैं। इसी प्रकार माथे पर ब्रह्मा, रुद्र, सींगों के अगले हिस्से में इंद्र का वास है।
गाय के दोनों कानों में अश्विनी कुमार हैं। आंखों में सूर्यदेव और चंद्रमा, दांतों में गरुड़ और जीभ में मां सरस्वती, अपान में सभी तीर्थ और मूत्र स्थान में गंगाजी का वास है।
गाय के रोमकूपों में ऋषियों का निवास है, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्र्व में वरुण देव एवं कुबेर, वाम पार्श्र्व में यक्ष, मुंह के अंदर गंधर्व, नाक के अगले भाग में नाग, खुरों के पृष्ठभाग में अप्सराओं का निवास है।