डर को नजदीक न आने दो, अगर यह नजदीक आए तो इस पर हमला कर दो यानी भय से भागो मत, इसका सामना करो।
– चाणक्य
लोगों में यह एक मान्यता सदियों से बड़ी प्रचलित है कि यदि अथक प्रयासों के बावजूद भी आपका कोई काम बनता नहीं हैं, तो भय के उपयोग से वह चुटकियों में शत प्रतिशत बन ही जाएगा। सचमुच ही भय नामक इस भूत का हम इंसानों से बड़ा गहरा नाता है, जो जन्मों जन्म तक हमारा पीछा नहीं छोड़ती हैं।
पता नहीं ऐसा क्या है मानव मस्तिष्क में जो भय को हमारे भीतर इस कदर जागृत कर देता है कि हम सबकुछ भूलकर उसके सामने बिलकुल आत्मसमर्पण कर देते हैं।
भय से करें मित्रता, डरें नहीं
पिछले कुछ वर्षों में किए गए अनुसंधान के आधार पर डॉक्टरों का यह मानना है कि जिस व्यक्ति के अन्दर स्थाई रूप से भय ने अपना स्थान बना लिया है, वह जैसे जीते जी मर जाता है यानी मृत्यु से पहले ही वह अनगिनत बार मरता है।
इसका सबसे व्यावहारिक उदाहरण अमरीका में हुई 9/11 की चौंकाने वाली घटना में मरने वालों की संख्या है। उस घटना में कई लोगों ने भय के वश अपनी जान गवां दी। इसी वजह से आज वहां पर अनगिनत काउंसलिंग क्लासेज चलती हैं, जहां लोगों को भय से मुक्त होने की कई प्रकार की विधियां सिखाई जाती हैं।
कहने का भाव यह है कि भले ही हम बाहर से यह दिखावा करें कि हमें किसी का कोई डर नहीं है लेकिन इस सत्य से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भय का भूत हम सभी के भीतर विराजमान था, है और रहेगा। अत: इससे पूर्ण छुटकारा पाने की जद्दोजहद करने से बेहतर है कि हम इससे मित्रता कर उसे अपने नियंत्रण में रखना सीख लें।
सजगता से भागेगा भय
यह भय मन का हिस्सा है। मन डरपोक है और डरपोक होना स्वाभाविक है क्योंकि उसमें कोई सार तत्व नहीं है। वह खाली और शून्य है। वह हर बात से डरता है। मूलतया वह इससे डरता है कि एक दिन तुम जाग सकते हो। वह सचमुच दुनिया का अंत होगा।
दुनिया का अंत इस अर्थ में कि तुम्हारा जाग जाना, तुम्हारे ध्यान की स्थिति को उपलब्ध हो जाना। वहां मन को विदा होना पड़ता है, वह असली डर है। इसलिए जीवन में बड़ी से बड़ी खोज, सबसे कीमती खजाना है सजगता। उसके बगैर तुम अंधकार में ही रहोगे, डर से भरपूर और तुम कभी स्वतंत्रता का स्वाद नहीं ले पाओगे।
थोड़ा डर भी जरूरी है
भोजन में जैसे नमक का महत्व होता है उसी प्रकार मनुष्यों को न्यायोचित होने के लिए थोड़े से भय की आवश्यकता होती है। दूसरों की क्षति होने का डर तुम्हें और अधिक सचेत करता है। असफलता का डर तुम्हें और अधिक प्रखर और क्रियाशील बनाता है।
भय तुम्हें लापरवाही से सावधानी की ओर ले जाता है। यह तुम्हें असंवेदनशीलता से संवेदनशीलता की ओर ले जाता है। बिल्कुल भी भय न होने की स्थिति में तुम हानिकारक प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर हो सकते हो। विकृत अहंकार डर को नहीं जानता। विस्तृत चेतना वाला व्यक्ति भी भय को नहीं जानता। भय तुम्हें समर्पण के करीब ले जाता है। भय तुम्हें तुम्हारे पथ पर रखता है, भय तुम्हें विनाशकारी होने से रोकता है।
बालमन में न भरें डर
बचपन में जब बच्चे कोई बात मानते नहीं तो माता-पिता उन्हें भूत आ जाएगा ऐसा कहकर डराके अपने काम बखूबी करवा लेते हैं, लेकिन वह भूल जाते हैं कि बच्चों के कोमल मन में वे अपने हाथों से भय का भयानक बीज बो रहे हैं, जो उसके जीवन को बर्बाद और तहस-नहस कर देगा। तभी तो आज जिसे देखो वह चाहे छोटा हो या बड़ा कॉकरोच, छिपकली और चूहे से डर जाता है। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के मन में डर को समाहित ना करें।
आज में जीएं जीवन
विद्वानों के मतानुसार भय से पहले आशंका की उत्पत्ति होती हैं, अत: हमें इस बात का स्मरण रहना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो जाए, कहीं वैसा न हो जाए, पता नहीं कल क्या होगा, ऐसे कैसे चलेगा इत्यादि आशंकाओं से जीवन की रफ्तार ठहर जाती है। इसका मूल कारण है आत्मविश्वास की कमी, जो हमें क्यों, क्या, कैसे की कतार में खड़ा कर देती है।
मनोचिकित्सकों के अनुसार ऐसे कमजोर संकल्प स्वयं की योग्यताओं पर संदेह होने से उत्पन्न होते हैं। अत: हमें अपने भीतर आत्मविश्वास जाग्रत करने के लिए आंतरिक सच्चाई और सफाई को धारण करना है। अपनी अंतरात्मा की निष्पक्ष और निष्कपट आवाज को सुनकर हर कार्य करना है और उसके बाद हर प्रकार के परिणाम को स्वीकार करने के लिए अपना दामन सदा खुला रखना है क्योंकि जो होगा, वह अच्छा ही होगा। बेकार घबराने से कुछ नहीं होगा।
याद रखें जिस किसी में भी निश्चय और दृढ़ मनोबल है वह धूल को भी हीरे में बदल सकता है। तो आज से यह एक बात पक्की कर लो कि बीते हुए कल का नाम भूत और आने वाले कल का नाम काल है, वर्तमान आपके पास है। इसलिए इसे बड़ी लगन और गंभीरता से जीएं और खुद व औरों को जीने की एक नई दिशा दें।