भगवान सूर्य की पूजा करने से अपार यश प्राप्त होता है। इसके साथ ही अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। ऐसे में प्रात उठकर पवित्र स्नान करें। इसके बाद भगवान सूर्य को रोली डालकर जल चढ़ाएं। सूर्य नमस्कार करें। उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें। इसके अलावा सूर्य कवच और स्तुति का पाठ करें।इससे कर्ज समेत सभी मुश्किलों से छुटकारा मिलेगा।
सनातन धर्म में रविवार का दिन बहुत कल्याणकारी माना जाता है। इस दिन लोग भगवान सूर्य की उपासना करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान सूर्य की पूजा करने से अपार यश प्राप्त होता है। इसके साथ ही अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। ऐसे में प्रात: उठकर पवित्र स्नान करें। इसके बाद भगवान सूर्य (Surya Puja) को रोली डालकर जल चढ़ाएं। सूर्य नमस्कार करें। उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें। इसके अलावा सूर्य कवच और स्तुति का पाठ करें।
इससे कर्ज समेत सभी मुश्किलों से छुटकारा मिलेगा। वहीं, सूर्य पूजन के साथ इस बाद का भी ध्यान रखें कि भूलकर भी अपने पिता का अपमान न करें, क्योंकि पिता को सूर्य का कारक माना जाता है।
।।श्री सूर्य स्तुति।।
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥
”सूर्य कवच”
॥श्री सूर्य ध्यानम्॥
रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥
श्री सूर्यप्रणामः
जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
। याज्ञवल्क्य उवाच ।
श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम् ॥॥
दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम् ।
ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥॥
शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः ।
नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥३ ॥
घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।
जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः ॥॥
स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः ।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः ॥॥
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।
दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥॥
सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः ।
स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति ॥॥
॥ इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं ॥