शिव पुराण में प्रदोष व्रत की महिमा का गुणगान विस्तार पूर्वक किया गया है। धार्मिक मत है कि प्रदोष व्रत पर शिव परिवार की पूजा करने से व्रती के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही व्रती की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। इसके अलावा व्रती पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसती है।
प्रदोष व्रत देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही शिव जी के निमित्त प्रदोष व्रत रखा जाता है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी आज मनाई जा रही है। इस उपलक्ष्य पर भगवान शिव के उपासक श्रद्धा भाव से अपने आराध्य देवों के देव महादेव और जगत की देवी मां पार्वती की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा की जाती है। अत: मंदिरों में संध्याकाल के समय भगवान शिव की पूजा की जाएगी। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 19 जून को प्रदोष काल शाम 07 बजकर 22 मिनट से 09 बजकर 22 मिनट तक है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अगर आप भी जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के दुख और संताप से निजात पाना चाहते हैं, तो प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।
काल भैरव तांडव स्तोत्र
ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरम् ।
लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् ।।
डमरुध्वनिशंखं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ।।
चर्चित सिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरम् ।
किँकिणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम् ।।
करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तशुकेशं पापहरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ।।
कलिमल संहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीध्रकरम् ।
कलुषंशमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगृन्तं शुद्धतरम् ।।
गतिनिन्दितहेशं नरतनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ।।
कठिन स्तनकुंभं सुकृत सुलभं कालीडिँभं खड्गधरम् ।
वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् ।।
तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ।।
ललिताननचंद्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरम् ।
सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् ।।
वरदाभयहारं तरलिततारं क्ष्युद्रविदारं तुष्टिकरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भृष्टमलम् ।
शरणागतपालं मृगमदभालं संजितकालं स्वेष्टबलम् ।।
पदनूपूरसिंजं त्रिनयनकंजं गुणिजनरंजन कुष्टहरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्री भैरव वेषं कष्टहरम् ।।
मदयिँतुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदम् ।
रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मंतिदमम् ।।
कुटिलभ्रकुटीकं ज्वरधननीकं विसरंधीकं प्रेमभरम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।
परिर्निजतकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशम् ।
बहुमधपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।।
कलयं तमशेषं भृतजनदेशं नृत्य सुरेशं वीरेशम् ।
भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।