हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होती है जिसका समापन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर होता है। इस 4 महीने की अवधि के दौरान मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं। आखिर चातुर्मास में मांगलिक कार्य क्यों नहीं किए जाते हैं। अगर नहीं पता तो आइए जानते हैं इसके बारे में।
पंचांग के अनुसार, चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से होती है। इसे चौमासा नाम से भी जाना जाता है। चातुर्मास की अवधि 4 महीने की होती है। इनमें श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक महीने शामिल हैं। इन महीने में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि चातुर्मास की अवधि में सच्चे मन से पूजा-अर्चना और जप-तप करने से इंसान को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
मांगलिक कार्य न होने की ये है वजह
धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से भगवान विष्णु के साथ सभी देवी-देवता योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर भगवान निद्रा से जागते हैं। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन शुरू हो रहा चातुर्मास
शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस बार चातुर्मास की शुरुआत 17 जुलाई से होगी। वहीं, इसका समापन 12 नवंबर को होगा।
इन कार्यों पर रहेगी रोक
ज्योतिष शास्त्र में चातुर्मास का वर्णन किया गया है। इस दौरान भूमि पूजन, मुंडन, विवाह, तिलक, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार समेत आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके अलावा नए कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। इस माह में भजन और कीर्तन करना चाहिए।
खानपान संबंधी नियम
चातुर्मास में सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए। इस अवधि के दौरान अंडे, मछली, मांस, प्याज और लहसुन समेत तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह सेहत और धार्मिक दोनों ही दृष्टि से बेहतर माना गया है। मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इन महीनों में तामसिक प्रवृत्तियां सबसे ज्यादा बढ़ जाती हैं जो व्यक्ति को गलत रास्ते में ले जाने का पूरा प्रयास करती है।