ज्योतिषियों की मानें तो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 जून को देर रात 02 बजकर 32 मिनट तक है। इस दिन दुर्लभ शिववास योग का संयोग बन रहा है। धार्मिक मत है कि भगवान शिव की पूजा करने वाले साधकों को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक व्याधि से मुक्ति मिलती है।
सनातन पंचांग के अनुसार, 15 जून को महेश नवमी है। यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवों के देव महादेव और जगत जननी मां पार्वती की पूजा की जाती है। माहेश्वरी समाज के लोग महेश नवमी पर भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। इस अवसर पर झांकी भी निकाली जाती है। भगवान शिव त्रिलोकीनाथ हैं। उनकी शरण में रहने वाले साधकों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मृत्यु उपरांत शिव लोक की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति विशेष की हर इच्छा पूरी होती है। अगर आप भी मनोवांछित फल पाना चाहते हैं, तो महेश नवमी पर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ और इन मंत्रों का जप अवश्य करें।
शिव मंत्र
1. ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन ।
तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती ।।
वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।
नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने ।
आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः ।
नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ।।
नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय ।।
देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम् ।
नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।
नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ।।
अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम् ।
नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम् ।।
सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये ।।
2. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
3. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
5. शिव द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्
सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्री शैले मल्लिकार्जुनम् |
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम् ||
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीम शंकरम् |
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुका बने ||
वाराणस्या तु वश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे |
हिमालये तु केदारं घुशमेशं च शिवालये ||
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:|
सप्त जन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ||
6. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
7. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
शिव चालीसा
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
।।चौपाई।।
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत संतन प्रतिपाला।।
भाल चंद्रमा सोहत नीके।
कानन कुंडल नागफनी के।।
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुंडमाल तन छार लगाये।।
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे।।
मैना मातु की ह्वै दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नंदि गणेश सोहै तहं कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महं मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी।।
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला।।
कीन्ह दया तहं करी सहाई।
नीलकंठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर।।
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उबारो।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो।।
मातु पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी।।
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे वो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद शारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पार होत है शंभु सहाई।।
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी।।
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पंडित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे ।।
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्तवास शिवपुर में पावे।।
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।
।।दोहा।।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।
मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।