सनातन धर्म में प्राचीन समय में भगवा और सफेद वस्त्र साधु और संन्यासी (Sadhu Sanyasi) के द्वारा धारण करने का रिवाज चला आ रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर किस कारण साधु और संन्यासी भगवा (Bhagwa Dress) और सफेद वस्त्र पहनते हैं? अगर नहीं जानते तो आइए इस आर्टिकल में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे।
सनातन धर्म में साधु और संन्यासी की सेवा करना और उन्हें विशेष चीजों का दान करना बेहद फलदायी बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से सुख-शांति और समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही साधु और संन्यासी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
सनातन धर्म में प्राचीन समय में भगवा और सफेद वस्त्र साधु और संन्यासी के द्वारा धारण करने का रिवाज चला आ रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर किस कारण साधु और संन्यासी भगवा (Bhagwa Dress) और सफेद वस्त्र (White Dress) पहनते हैं? अगर नहीं जानते, तो आइए इस आर्टिकल में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे।
इसलिए धारण करते हैं भगवा और सफेद वस्त्र
- भगवा रंग को ऊर्जा और त्याग का प्रतीक चिन्ह माना गया है। इसलिए साधु और संन्यासी भगवा रंग के वस्त्र धारण करते हैं।
- मान्यता के अनुसार, भगवा वस्त्र पहनने से जातक का मन काबू में रहता है और दिमाग में किसी इंसान के प्रति गलत विचार नहीं आते हैं। इसके अलावा मन भी सदैव शांत रहता है।
- वहीं, जैन धर्म में लोग सफेद वस्त्र धारण करते हैं। आपने देखा होगा कि जैन धर्म में दो प्रकार (पहले दिगंबर और दूसरे श्वेतांबर) के साधु होते हैं। दिगंबर जैन साधु वस्त्र नहीं पहनते हैं, वहीं श्वेतांबर सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
पूजा के दौरान इसलिए धारण करते हैं पीला वस्त्र
सनातन धर्म में पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य के दौरान पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं। वहीं, जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी को पीला रंग अधिक प्रिय है। इसलिए पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र पहनने का अधिक महत्व है।
हरा रंग का महत्व
हरा रंग प्रकृति का सूचक होता है। इसके अलावा, हरा रंग आयुर्वेद को भी दर्शाता है। वहीं, ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए, तो हरा रंग बुध ग्रह का भी प्रतीक माना गया है। इसलिए पूजा के दोरान हरा रंग का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि पूजा और धार्मिक कार्य में हरे रंग का प्रयोग करने से जातक को स्वास्थ्य में लाभ देखने को मिल सकता है।