वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बेहद उत्साह के साथ नरसिंह जयंती मनाई जाती है। भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रहलाद को राक्षस राज हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए नरसिंह का अवतार लिया था। नरसिंह जयंती पर भगवान नरसिंह की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस साल नरसिंह जयंती 21 मई को है
भगवान नरसिंह जगत के पालनहार भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं, जिन्होंने हिरण्यकश्यप के वध के लिए अवतार लिया। हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस बार नरसिंह जयंती 21 मई को है। इस शुभ अवसर पर भगवान नरसिंह की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि प्रभु की पूजा करने से जातक को जीवन के सभी तरह के दुख और संकट से छुटकारा मिलता है। चलिए जानते हैं आखिर किस कारण श्री हरि को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा।
नरसिंह जयंती कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था। उसने अपनी तपस्या के द्वारा ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। उसे प्रभु से यह वरदान प्राप्त हुआ कि उसे न कोई अस्त्र से मार सके और न शस्त्र से, न कोई घर में मार सके और न बाहर, न मनुष्य से मरे न पशु से, न दिन में मरेगा न रात में, न पृथ्वी न आकाश में। इस प्रकार के वरदान मिलने के बाद हिरण्यकश्यप श्री हरि के भक्तों को परेशान करने लगा। साथ ही सभी लोकों पर उसका राज हो गया।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता था, लेकिन हिरण्यकश्यप इस बात से प्रसन्न नही था। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार श्री हरि की कृपा से प्रह्लाद बच जाता था। इससे हिरण्यकश्यप को क्रोध आ गया। हिरण्यकश्यप ने एक बार फिर प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया। उस दौरान भगवान नरसिंह खंबा फाड़कर प्रकट हुए। वह आधे इंसान और आधे शेर के रूप में अवतरित हुए थे। हिरण्यकश्यप को मुख्य दरवाजे के बीच अपने पैर पर लिटा दिया। नाखूनों से पेट फाड़कर उसका वध दिया। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद की रक्षा की। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि जो जातक वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को व्रत करेगा। वह जीवन में के दुखों से दूर रहेगा