कुंडली में चंद्रमा मजबूत होने से जातक हमेशा प्रसन्नचित्त रहता है। जातक को हर शुभ कार्य में सफलता प्राप्त होती है। वहीं चन्द्रमा कमजोर होने पर जातक को मानसिक तनाव की समस्या होती है। साथ ही माता जी की सेहत अच्छी नहीं रहती है। अतः ज्योतिष हमेशा कुंडली में चंद्रमा मजबूत करने की सलाह देते हैं। इसके लिए सोमवार के दिन पूजा के समय ये उपाय जरूर करें।
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक कहा जाता है। कुंडली में चंद्रमा मजबूत होने से जातक हमेशा प्रसन्नचित्त रहता है। जातक को हर शुभ कार्य में सफलता प्राप्त होती है। वहीं, चन्द्रमा कमजोर होने पर जातक को मानसिक तनाव की समस्या होती है। साथ ही माता जी की सेहत अच्छी नहीं रहती है। अतः ज्योतिष हमेशा कुंडली में चंद्रमा मजबूत करने की सलाह देते हैं। कुंडली में चंद्रमा मजबूत रहने से जातक को जीवन में मन मुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी अपनी कुंडली में चंद्रमा मजबूत करना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन पूजा के समय ये उपाय जरूर करें। इन उपायों को करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है। साथ ही मानसिक तनाव से भी निजात मिलती है।
उपाय
- अगर आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, तो सोमवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही सोमवार के दिन वट वृक्ष में जल का अर्घ्य दे। इस समय वट वृक्ष की 3 बार परिक्रमा करें। इस उपाय को करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है।
- भगवान शिव की पूजा करने से भी कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है। अतः सोमवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद कच्चे दूध से भगवान शिव का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से भी कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है।
- अगर आप चंद्र देव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन चांदी की अंगूठी अपनी उंगली में धारण करें। आप चांदी से निर्मित कछुआ भी धारण कर सकते हैं। इस उपाय को करने से भी कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है।
- ज्योतिष शास्त्र की मानें तो सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा के समय चंद्र स्तोत्र का पाठ करने से भी कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है। आप इस स्तोत्र का पाठ पूर्णिमा के दिन भी कर सकते हैं।
- कुंडली में चंद्रमा मजबूत होने से माता जी की सेहत अच्छी रहती है। अतः माता जी की सेवा करें। साथ ही घर के बड़े सदस्यों की भी सेवा करें। उनकी आज्ञा का पालन करें।
- ज्योतिषियों की मानें तो सोमवार का व्रत करने से भी कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है। इस व्रत को शुक्ल पक्ष से शुरू कर सकते हैं। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।