ज्योतिषियों की मानें तो कालाष्टमी तिथि पर कालसर्प दोष निवारण हेतु उपाय भी किए जाते हैं। अगर आप भी कालसर्प दोष से निजात पाना चाहते हैं तो कालाष्टमी तिथि पर भगवान शिव की श्रद्धा भाव से पूजा करें। इस समय गंगाजल या कच्चे दूध में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही भगवान शिव के अभिषेक के समय इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ करें।
हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। वैशाख महीने में 01 मई को कालाष्टमी है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मत है कि कालाष्टमी तिथि पर भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की पूजा करने से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में मंगल का आगमन होता है। ज्योतिषियों की मानें तो कालाष्टमी तिथि पर कालसर्प दोष निवारण हेतु उपाय भी किए जाते हैं। अगर आप भी कालसर्प दोष से निजात पाना चाहते हैं, तो कालाष्टमी तिथि पर भगवान शिव की श्रद्धा भाव से पूजा करें। इस समय गंगाजल या कच्चे दूध में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही भगवान शिव के अभिषेक के समय इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से कालसर्प दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
नाग स्तोत्र
ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गन्च ये च समाश्रिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
सर्प सत्रे च ये सर्पाः अस्थिकेनाभि रक्षिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
प्रलये चैव ये सर्पाः कार्कोट प्रमुखाश्चये ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
ये सर्पाः पर्वत येषु धारि सन्धिषु संस्थिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥
रसातले च ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः ।
नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥