रविवार, 24 मार्च (फाल्गुन पूर्णिमा) की रात होलिका दहन होगा। अगले दिन यानी 25 मार्च को होली खेली जाएगी। होलिका दहन के समय जलती हुई होली में अन्न और पूजन सामग्री की आहुति दी जाती है। जानिए इस परंपरा से जुड़ी खास बातें…
होलिका की अग्नि है यज्ञ की प्रतीक
होली को अग्नि को यज्ञ का प्रतीक माना जाता है। यज्ञ में अलग-अलग अन्न, पूजन सामग्रियां और औषधियों की आहुति दी जाती है, ठीक इसी तरह जलती हुई होली में भी आहुतियां दी जाती हैं।
होली में आहुति क्यों दी जाती है?
पुराणों के अनुसार हमें जीवन के लिए जरूरी सभी चीजें प्रकृति से ही मिलती हैं और जो भी चीजें हमें प्रकृति से मिलती हैं, वही चीजें हम भगवान को समर्पित करके आभार व्यक्त करते हैं। होली के समय में गेहूं, चने के साथ कई अन्य फसलें पक जाती हैं। फसल आने पर उत्सव मनाने की परंपरा है। पुराने समय से ही जब फसल पकती है तब होली जलाकर उत्सव मनाया जाता है, जलती होली को यज्ञ मानकर नया अन्न भगवान को अर्पित किया जाता है।
तंत्र साधना के लिए बहुत खास होती है रविवार की होलिका दहन
जब रविवार को होलिका दहन होता है तो ये रात तंत्र साधना के लिए बहुत खास होती है। तंत्र साधक होलिका दहन की रात अपने इष्टदेव का विशेष पूजन करते हैं। गुरु के मंत्रों का जप करते हैं। रात में जागकर तपस्या और ध्यान किया जाता है।
फाल्गुन पूर्णिमा पर करें पितरों के लिए श्राद्ध कर्म
फाल्गुन पूर्णिमा पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म जरूर करना चाहिए। माना जाता है कि इस तिथि पर किए गए श्राद्ध, तर्पण, धूप-ध्यान से घर-परिवार के पितर देवता बहुत प्रसन्न होते हैं। पितर देवता घर-परिवार के मृत सदस्यों को कहा जाता है। इस दिन जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान भी करना चाहिए।
फाल्गुन पूर्णिमा और होली से जुड़ी अन्य मान्यताएं
इस पर्व पर हिंडोला दर्शन करने का भी महत्व है। भविष्य पुराण के अनुसार नारद जी के कहने पर युधिष्ठिर ने फाल्गुन पूर्णिमा पर कई बंदियों को अभयदान दिया था। बंदियों को मुक्त करने के बाद कंडे जलाकर होली मनाई गई थी।