मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड स्थित निवाड़ी जिले में ओरछा एक कस्बा है। यह नगरी धार्मिक नगरी के रूप में जानी जाती है। बेतवा नदी किनारे स्थित ओरछा में भगवान राजा राम विराजमान हैं। ऐसा बताया जाता है कि भगवान श्री राम अध्योया से चलकर रानी कुंवरि की गोद में आए थे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रामराजा मंदिर में भगवान दिन में निवास करते हैं, लेकिन रात्रि को शयन के लिए अयोध्या चले जाते हैं। यही वजह है कि उनको भोग का प्रसाद राजसी वैभव का प्रतीक पान और इत्र होता है। दूर-दूर से यहां हर वर्ष अधिक संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
यहां रामराजा सरकार जन-जन के आराध्य हैं। ओरछा में राजसी अंदाज में रामराजा सरकार विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और आरती के दौरान उन्हें बंदूकों से सलामी दी जाती है। वैसे यहां सालों भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन रामनवमी के अवसर पर यहां अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं। कहा जाता है कि श्री रामराजा मंदिर में हिंदुओं के साथ मुसलमान भी रामराज की पूजा-अर्चना करते हैं।
सरयू में छलांग लगाते ही गोद में आ गए थे राम
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वर्ष 1631 में ओरछा के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी रानी कुंवरि गणेश रामभक्त थीं। एक बार राजा मधुकर शाह ने रानी कुंवरि गणेश को वृंदावन चलने के लिए कहा, लेकिन रानी ने अयोध्या जाने की जिद की। राजा ने कहा था कि राम सच में हैं तो ओरछा लाकर दिखाओ। महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या गईं। जहां उन्होंने भगवान श्री राम को प्रकट करने के लिए तप शुरू किया। 21 दिन के बाद भी कोई परिणाम न मिलने पर वह सरयू नदी में कूद गईं। जहां भगवान श्री राम बाल स्वरूप में उनकी गोद में बैठ गए।
भगवान ने ओरछा चलने को लेकर रखीं थी तीन शर्तें
भगवान श्री राम जैसे ही रानी की गोद में बैठे तो रानी ने ओरछा चलने की कही। प्रभु राम ने 3 शर्तें महारानी के सामने रखीं। पहली शर्त थी कि ओरछा में जहां बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं। दूसरी शर्त यह है कि राजा के रूप में विराजमान होने के बाद वहां पर किसी ओर की सत्ता नहीं चलेगी। तीसरी शर्त यह है कि खुद बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ चलेंगे।
अब भी है सूना मंदिर
ओरछा में प्रभु श्रीराम के आने की खबर सुनकर मधुकर शाह ने उन्हें बैठाने के लिए चतुर्भुज मंदिर का बेहद शानदार निर्माण किया। मंदिर को शानदार तरीके से सजाने के लिए रानी कुंवरि गणेश की रसोई में भगवान को ठहराया गया था। भगवान श्रीराम की शर्त थी कि वह जहां बैठेंगे, फिर वहां से नहीं उठेंगे। यही कारण है कि उस समय बनवाए गए मंदिर में भगवान नहीं गए। वह आज भी सूना है और भगवान महारानी की रसोई में विराजमान हैं। जहां वर्तमान में अलग मंदिर बनाया गया है।